मज़दूर दिवस


कल मज़दूर दिवस है... यानी हमारा दिन... हम भी तो मज़दूर ही हैं... हमें अपने मज़दूर होने पर फ़ख़्र है... हमारे काम के घंटे तय नहीं हैं.... सुबह से लेकर देर रात तक कितने ही काम करने पड़ते हैं... यह बात अलग है कि हमारा काम लिखने-पढ़ने का है... इसके अलावा हम घर का काम भी कर लेते हैं... घर की साफ़-सफ़ाई, कपड़े-बर्तन धोना, खाना बनाना जैसे काम भी अकसर करने पड़ते हैं... किसी का ख़ून चूसकर अपनी तिजोरियां भरकर 'अमीर’ कहलाने से कहीं बेहतर है 'मज़दूर’ हो जाना...

सभी मेहनतकशों से कहना चाहेंगे कि अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहना.. हक़ सिर्फ़ मांगने से नहीं मिलता, उसे हासिल किया जाता है... मेहनत कभी ज़ाया नहीं जाती...
बक़ौल साहिर लुधियानवी-
वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर झलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगा, जब धरती नगमे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी...
-फ़िरदौस ख़ान 



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1 Response to "मज़दूर दिवस"

  1. Neetu Singhal says:
    3 मई 2014 को 4:00 pm बजे

    मजदूर मजदूरी को मजबूर है..,
    मज़बूरी पेश है, मजदूरी दूर है.....

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