नील का हम पर हक़ है...
फ़िरदौस ख़ान
नील दुनिया की सबसे लंबी नदी है. क़ुरआन और बाइबल में भी इस नदी का ज़िक्र आता है. नबी और यहूदी धर्म के संस्थापक हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को उनकी मां ने नील नदी के हवाले कर दिया था. मिस्र के फ़िरऔन के ज़माने में जन्मे मूसा यहूदी माता-पिता के की औलाद थे, लेकिन मौत के डर से उनकी मां ने उन्हें नील नदी में बहा दिया था. उन्हें फ़िरऔन की पत्नी ने पाला और मूसा एक मिस्री शहज़ादे बने. बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वो यहूदी हैं और उनके यहूदी मुल्क को फ़िरऔन ने ग़ुलाम बना लिया है. हज़रत मूसा ने एक मिस्री व्यक्ति से एक यहूदी को पिटते देखा तो उन्हें ग़ुस्सा आ गया और उन्होंने उस मिस्री को मार डाला और मदैन चले गए. वहां उन्होंने विवाह कर लिया और अपने ससुर के घर 10 साल तक रहकर उनकी ख़िदमत की. इसके बाद वह अपने परिवार सहित वहां से रवाना हो गए. एक पहाड़ पर उन्होंने आग जलती देखी. वह अकेले पहाड़ पर गए. यहां हज़रत मूसा की अल्लाह से मुलाक़ात हुई. अल्लाह के आदेश पर उन्होंने फ़िरऔन को हराकर यहूदियों को आज़ाद कराया और उन्हें मिस्र से इस्राईल पहुंचाया.
जब हज़रत मूसा अपने लोगों को आज़ाद कराकर मिस्र से रवाना हुए तो फ़िरऔन की फ़ौजों ने उनका पीछा किया. फ़ौज को आते देख हज़रत मूसा ने नील से रास्ता मांगा. और फिर नील नदी में रास्ता बन गया. सभी लोग नील को पार कर दूरी तरफ़ पहुंच गए, लेकिन जब फ़िरऔन की फौजें इस रस्ते पर आईं तो नील ने सबको गर्क कर दिया. मगर नील ने फ़िरऔन को वापस फ़ेंक दिया. रास्ते में इस्राईल संतति को अल्लाह की तरफ़ से दिव्य भोजन- 'मन्न', 'सल्वा' आता था. जब वह अल्लाह से बात करने और उसके आदेश लेने के लिए गए थे और अपने भाई हारून के ज़िम्मे इस्राईल संतति को कर गए थे. इस दौरान कुछ लोगों ने 'सामरी' के बहकावे में आकर एक बछड़ा बनाकर उसकी पूजा शुरू कर दी. सामरी ने जिब्राइल की धूलि से बछड़े में बोलने की शक्ति तक पैदा कर दी थी. जब हज़रत मूसा ने अल्लाह से बात की तो जवाब मिला - तू न देख सकेगा. अच्छा पहाड़ की तरफ़ देख. उस तेज़ को देख वह मूर्च्छित होकर गिर पड़े. अल्लाह ने अपने आदेश को पट्टियों पर लिखकर उन्हें दिए. हज़रत मूसा ने इस्राईल को अल्लाह द्वारा मिले 'दस आदेश' दिए, जो आज भी यहूदी धर्म का प्रमुख स्तंभ है. क़ाबिले-गौर है कि फ़िरऔन की लाश को एक बक्से में रखा गया है.
गौरतलब है कि नील नदी अफ्रीका की सबसे बड़ी झील विक्टोरिया से निकलकर सहारा मरुस्थल के पूर्वी हिस्से को पार करती हुई उत्तर में भूमध्यसागर में गिरती है. यह भूमध्य रेखा के निकट भारी वर्षा वाले क्षेत्रों से निकलकर दक्षिण से उत्तर क्रमशःयुगाण्डा, इथियोपिया, सूडान एवं मिस्र से होकर बहते हुए एक लंबी घाटी बनाती है, जिसके दोनों तरफ़ की ज़मीन पतली पट्टी के रूप में हरी-भरी नज़र आती है. यह पट्टी दुनिया का सबसे बड़ा मरूद्यान है. इसकी कई सहायक नदियां हैं, जिनमें श्वेत नील एवं नीली नील मुख्य हैं. अपने मुहाने पर यह 160 किलोमीटर लंबा और 240 किलोमीटर चौड़ा विशाल डेल्टा बनाती है. घाटी का सामान्य ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है. मिस्र की प्राचीन सभ्यता का विकास इसी नदी की घाटी में हुआ है. इसी नदी पर मिस्र देश का प्रसिद्ध अस्वान बांध बनाया गया है.
नील नदी की घाटी का दक्षिणी भाग भूमध्य रेखा के समीप स्थित है. यहां भूमध्यरेखीय जलवायु पाई जाती है. यहां साल भर तापमान ज़्यादा रहता है. सालाना बारिश का औसत 212 सेमी. है. इसी वजह से यहां भूमध्यरेखीय सदाबहार के वन पाए जाते हैं. नील नदी के मध्यवर्ती भाग में सवाना तुल्य जलवायु पाई जाती है. इस प्रदेश में सवाना नामक उष्ण कटिबन्धीय घास का मैदान है. यहां पाए जाने वाले गोंद देने वाले पेड़ों के कारण सूडान दुनिया का सबसे बड़ा गोंद उत्पादक देश है. उत्तरी भाग में वर्षा के अभाव में खजूर, कंटीली झाड़ियां और बबूल आदि मरुस्थलीय वृक्ष मिलते हैं. उत्तर के डेल्टा क्षेत्र में भूमध्यसागरीय जलवायु पाई जाती है. यहां वर्षा सर्दियों के मौसम में होती है...
नील नदी के बारे में लिखी मिस्र के प्रोफ़ेसर अहमद अल क़ादी की यह नज़्म याद आती है...
मिस्र की तरफ़ लौट आओ
नील का पानी हम सबके लिए काफ़ी है...
उसने तुम्हें ज़िन्दगी के
वो अच्छे दिन अता किए
जिन्हें तुम याद करते रहते हो...
फिर तेल ने डॉलर को लेकर
हमने बहकना चाहा...
मिस्र की तरफ़ लौट आओ
उसके किनारों की गहराइयों में जाओ
नील का हम पर हक़ है...
3 सितंबर 2011 को 12:26 pm बजे
बेहद सार्थक व सटीक लेखन ...आभार ।
3 सितंबर 2011 को 9:46 pm बजे
इस जानकारीपरक आलेख के लिये आभार...
4 सितंबर 2011 को 5:20 pm बजे
thanks for information
6 सितंबर 2011 को 1:43 pm बजे
सुन्दर.
13 सितंबर 2011 को 5:32 pm बजे
हज़रत मूसा और नील नदी के बारे में जानकार अच्छा लगा..... बस आप हमेशा इसी तरह लिखती रहें.....आपकी तहरीर का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.....