सहरा की धूप नज़र आती है ये हयात
पतझड़ में मुझको ख़ार का मौसम बहुत अज़ीज़
तन्हा उदास शाम का आलम बहुत अज़ीज़
छोटी-सी ज़िन्दगी में पिया है कुछ इतना ज़हर
लगने लगा है मुझको हर इक ग़म बहुत अज़ीज़
सहरा की धूप नज़र आती है ये हयात
जाड़ों की नरम धूप-सा हमदम बहुत अज़ीज़
सारी उम्र गुज़ारी है ख़ुदा ही के ज़िक्र में
मोमिन की नात में ढली सरगम बहुत अज़ीज़
सूरज के साथ-साथ हूं आशिक़ बहारे-गुल
सावन बहुत अज़ीज़, शबनम बहुत अज़ीज़
-फ़िरदौस ख़ान
शब्दार्थ
अज़ीज़ : प्रिय
हयात : ज़िन्दगी
24 सितंबर 2008 को 9:16 am बजे
छोटी-सी ज़िन्दगी में पिया है कुछ इतना ज़हर
लगने लगा है मुझको हर इक ग़म बहुत अज़ीज़
" bhut sunder alfaz"
Regards
24 सितंबर 2008 को 11:52 am बजे
पतझड़ में मुझको ख़ार का मौसम बहुत अज़ीज़
तन्हा उदास शाम का आलम बहुत अज़ीज़
छोटी-सी ज़िन्दगी में पिया है कुछ इतना ज़हर
लगने लगा है मुझको हर इक ग़म बहुत अज़ीज़
संजीदा और दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल है...
24 सितंबर 2008 को 2:39 pm बजे
पतझड़ में मुझको ख़ार का मौसम बहुत अज़ीज़
तन्हा उदास शाम का आलम बहुत अज़ीज़
छोटी-सी ज़िन्दगी में पिया है कुछ इतना ज़हर
लगने लगा है मुझको हर इक ग़म बहुत अज़ीज़
dil ko cho liya hai ..bahut achchi hai najm
24 सितंबर 2008 को 8:14 pm बजे
बहुत उम्दा!!
24 सितंबर 2008 को 8:30 pm बजे
yon to aapki gazal ka har sher bahut umda aur pukhta hai, lekin in in panktion ki baat hi kutch aur hai.
सूरज के साथ-साथ हूं आशिक़ बहारे-गुल
सावन बहुत अज़ीज़, शबनम बहुत अज़ीज़
gazal key liye shukria.
25 सितंबर 2008 को 1:10 pm बजे
सहरा की धूप नज़र आती है ये हयात
जाड़ों की नरम धूप-सा हमदम बहुत अज़ीज़
दिल को छू लेने वाली ग़ज़ल .... बहुत उम्दा!!
25 सितंबर 2008 को 3:26 pm बजे
वाह ! फिरदौस जी !बहुत बढ़िया ग़ज़ल
7 अक्टूबर 2008 को 3:17 pm बजे
सारी उम्र गुज़ारी है ख़ुदा ही के ज़िक्र में
मोमिन की नात में ढली सरगम बहुत अज़ीज़
बहोत ख़ूब फ़िरदौसजी!
आपके ब्लोग पर लिंक देनेके लिये शुक्रिया।