चांदनी रात में कुछ भीगे ख़्यालों की तरह
चांदनी रात में कुछ भीगे ख़्यालों की तरह
मैंने चाहा है तुम्हें दिन के उजालों की तरह
साथ तेरे जो गुज़ारे थे कभी कुछ लम्हें
मेरी यादों में चमकते हैं मशालों की तरह
इक तेरा साथ क्या छूटा हयातभर के लिए
मैं भटकती रही बेचैन ग़ज़ालों की तरह
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
तेरे आने की ख़बर लाई हवा जब भी कभी
धूप छाई मेरे आंगन में दुशालों की तरह
कोई सहरा भी नहीं, कोई समंदर भी नहीं
अश्क आंखों में हैं वीरान शिवालों की तरह
पलटे औराक़ कभी हमने गुज़श्ता पल के
दूर होते गए ख़्वाबों से मिसालों की तरह
-फ़िरदौस ख़ान
6 अगस्त 2008 को 9:01 am बजे
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं. एक गंभीर और संवेदनशील पत्रकार के तौर पर हम आपकी खूबियों से परिचित हैं. अब आपकी कविताओं और गजलों से भी हम लाभान्वित होंगे. ब्लॉग जगत में इस डायरी की निरंतरता बनी रहे, बस यही शुभकामना.
6 अगस्त 2008 को 10:28 am बजे
फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह
wah ..bahut badhiyaa...
14 मार्च 2010 को 9:09 am बजे
सुन्दर गज़ल
साथ तुम्हारे गुजारे थे कभी कुछ लम्हे ---
बेहतरीन
14 मार्च 2010 को 9:24 am बजे
धर एक शेर लाजवाब । बधाई इस गज़ल के लिये।
14 मार्च 2010 को 12:50 pm बजे
BAHUT SUNDAR GAJAL
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