महबूब से वाबस्ता हर चीज़ें


महबूब से वाबस्ता हर चीज़ अज़ीज़ हुआ करती है. फिर वो ज़मीन क्यूं न अज़ीज़ हो, जिस ज़मीन पर महबूब के क़दम रखे गए हों. जिसकी फ़िज़ाओं में उसकी सांसों की महक शामिल हो. जहां की हवायें उसके जिस्म को छूकर गुज़री हों. फिर क्यूं न उस ज़मीन का हर ज़र्रा क़ाबिले-एहतराम हो.
फ़िरदौस ख़ान
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