तेरा हिज्र

जो रूह में बसा हो... उसका साथ होना क्या और दूर होना क्या... मुहब्बत तो दिल से हुआ करती है, रूह से हुआ करती है... ऐसे में दूरियां कोई मायने नहीं रखती...
निदा फ़ाज़ली साहब ने भी क्या ख़ूब कहा है-
तेरा हिज्र ही मेरा नसीब है, तेरा ग़म मेरी हयात है
मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों, तू कहीं भी हो मेरे साथ है...

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