जहां क़दम ले चलें


बहुत दिनों से कहीं जाना चाहते हैं... लेकिन कहां, यह मालूम नहीं है... पर इतना ज़रूर है कि कहीं जाना है... किसी पहाड़ पर... क़ुदरत के बेहद क़रीब... जहां कल-कल करती बहती नदी हो... देर तक नदी के पानी में पैर लटका कर बैठे रहें... जहां झर-झर झरते झरने हों... जिसे देर तक निहारते रहें... किसी पहाड़ी सड़क पर दूर तक पैदल चलते रहें किसी अनजान राह पर... या फिर किसी ऐसी जगह जाएं, जहां दूर-दूर तक रेत ही रेत हो... रेतीले टीले हों... मरूस्थल में उगने वाले दरख़्त हों... गरम रेत में जब चलते-चलते थक जाएं, तो किसी घने दरख़्त की छाया में बैठ जाएं... या फिर समंदर के किनारे... जहां लहरों पर अठखेलियां करती सूरज की सुनहरी किरनें हो... कंकरीट की इन बस्तियों से दूर, बहुत दूर... जहां क़ुदरती नज़ारें हो...
बस, जाना है... कहीं भी... जहां क़दम ले चलें...
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