रिश्तेदार...


दुनिया में अहमियत सिर्फ़ ख़ूनी और काग़ज़ी रिश्तों की ही हुआ करती है, भले ही वो कितने ख़राब और तकलीफ़ देने वाले ही क्यों न हों...
एक अमीर शख़्स था... उसकी बीवी थी, बेटी थी... अमीर शख़्स की ज़िन्दगी में एक बुरा दौर आया, बहुत ही बुरा दौर... उस वक़्त उसकी बीवी और उसकी बेटी उसके पास नहीं थी... तब उसकी दोस्त उसके साथ थी... बरसों तक उस दोस्त ने उसकी ख़िदमत की, उसका साथ दिया...
जब अमीर शख़्स का आख़िरी वक़्त आया, तो जायदाद के लिए उसकी बीवी, बेटी और दामाद उसके पास आ गए... घर में डेरा डाल लिया... अमीर शख़्स मर गया... उसकी बीवी, बेटी और दामाद ने उस दोस्त को घर से निकाल दिया... वो कहने लगी कि मैंने अपनी ज़िन्दगी के बहुत साल अमीर शख़्स की देखभाल करते हुए, उसके साथ बिताए. अब इस उम्र में कहां जाऊंगी... मुझ पर रहम करो, मेरे सर से छत तो मत छीनो... इस पर अमीर शख़्स की बेटी ने कहा- जायदाद पर रिश्तेदारों का हक़ होता है, दोस्त का नहीं...

कितना सच कहा उस अमीर शख़्स की बेटी ने... वाक़ई इंसान की हर चीज़ पर उसके रिश्तेदारों का ही हक़ हुआ करता है... दोस्त तो सिर्फ़ दोस्त ही हुआ करते हैं... वैसे भी इंसान कमाता किसके लिए है, रिश्तेदारों के लिए ही न... अपनी बीवी के लिए, अपने बच्चों के लिए, अपने घर-परिवार के लिए... दोस्त तो टाइम पास ही होते हैं, शायद...

तस्वीर : गूगल से साभार
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