हव्वा की बेटी...


एक लड़की जो जीना चाहती थी... अरमानों के पंखों के साथ आसमान में उड़ना चाहती थी, लेकिन हवस के भूखे एक वहशी दरिन्दे ने उसकी जान ले ली. एक चहकती-मुस्कराती लड़की अब क़ब्र में सो रही होगी... उसकी रूह कितनी बेचैन होगी... सोचकर ही रूह कांप जाती है... लगता है उस क़ब्र में रेहाना जब्बारी नहीं हम ख़ुद दफ़न हैं...
रेहाना ! हमें माफ़ करना... हम तुम्हारे लिए सिर्फ़ दुआ ही कर सकते हैं...
रेहाना जब्बारी को समर्पित एक नज़्म
हव्वा की बेटी...

मैं भी
तुम्हारी ही तरह
हव्वा की बेटी हूं
मैं भी जीना चाहती थी
ज़िन्दगी के हर पल को
मेरे भी सतरंगी ख़्वाब थे
मेरे सीने में भी
मुहब्बत भरा
एक दिल धड़कता था
मेरी आंखों में भी
एक चेहरा दमकता था
मेरे होठों पर भी
एक नाम मुस्कराता था
जो मेरी हथेलियों पर
हिना सा महकता था
और
कलाइयों में
चूड़ियां बनकर खनकता था
लेकिन
वक़्त की आंधी
कुछ ऐसे चली
मेरे ख़्वाब
ज़र्रा-ज़र्रा होकर बिखर गए
मेरे अहसास मर गए
मेरा वजूद ख़ाक हो गया

फ़र्क़ बस ये है
तुम ज़मीन के नीचे
दफ़न हो
और मैं ज़मीन के ऊपर...
-फ़िरदौस ख़ान

तस्वीर : गूगल से साभार
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

4 Response to "हव्वा की बेटी..."

  1. Yashwant R. B. Mathur says:
    5 नवंबर 2014 को 3:37 pm बजे

    कल 06/नवंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

  2. Pratibha Verma says:
    6 नवंबर 2014 को 12:04 pm बजे

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

  3. कविता रावत says:
    6 नवंबर 2014 को 5:41 pm बजे

    मर्मस्पर्शी रचना ...

  4. प्रभात says:
    6 नवंबर 2014 को 11:24 pm बजे

    बढ़िया नज्म ........मैंने जब सुना इनके बारे में तभी मेरे भी रूह कांप गए...ईश्वर नाइंसाफी ऐसे लोगों के साथ कैसे कर सकता है!

एक टिप्पणी भेजें