सालगिरह या बर्थ डे...


फ़िरदौस ख़ान
सालगिरह... यानी बर्थ डे... क्या दोनों एक ही हैं... यानी एक ही चीज़ के दो नाम...? हालांकि लोग इसे एक ही चीज़ के दो नाम कहेंगे... लेकिन हमें ऐसा नहीं लगता... क्योंकि  हमने सालगिरह भी देखी है और बर्थ डे भी... हमारी एक सहेली का बर्थ डे था... उस दिन उसके लिए केक आया, हैप्पी बर्थ डे लिखा हुआ... केक पर उसका नाम भी था... केक पर रंग-बिरंगी मोमबत्तियां सजी थीं... रस्म के मुताबिक़ मोमबत्तियां बुझाई गईं... केक काटा गया... सबने केक खाया और कोल्ड ड्रिंक पी... उसे तोहफ़े दिए गए... मोबाइल से फ़ोटो ख़ींचे गए और फ़ेसबुक पर अपलोड किए गए... वह बहुत ख़ुश थी...

यह था बर्थ डे... अब बात करते हैं सालगिरह की... हमारे एक मुंह भोले भाई हैं, उनकी बेटी हमारी दोस्त है... उसकी सालगिरह थी... उस दिन शाम को भाई ने ख़ुद क़ीमा, मटन क़ौरमा और मटन बिरयानी बनाई... बाहर से नान मंगाए गए... मिठाई और फल भी मंगाए गए... रात के खाने के वक़्त दस्तरख़ान लगाया गया... दस्तरख़ान पर क़ीमा, मटन बिरयानी, मटन क़ौरमा, नान, मिठाई और फल रखे गए... सबने एक साथ खाना खाया...  खाने के कुछ देर बाद कॊफ़ी पी और साथ में नमकीन और मिठाई भी खाई... भाई ने अपनी बेटी को तोहफ़ा दिया... हमने और दूसरे लोगों ने भी उसे तोहफ़े दिए... वह बहुत ख़ुश थी... उसके साथ पूरा घर ख़ुश था... क्योंकि बहुत दिनों बाद सबने भाई के हाथ का बना खाना खाया था... भाई दोपहर से ही रात के खाने की तैयारी में जुटे हुए थे... कहीं कोई दिखावा नहीं था... हमें भी बहुत अच्छा लगा... अच्छा तो हमें बर्थ डे में भी लगा था, लेकिन जो अपनापन सालगिरह में था, वह बर्थ डे कहीं नज़र नहीं आया... शायद अल्फ़ाज़ के साथ उनसे वाबस्ता अहसास भी मुख़्तलिफ़ हो जाया करते हैं...
   
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
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