बहार


  • बहार आई है... पतझड़ में वीरान हुए दरख़्तों पर सब्ज़ पत्ते मुस्करा रहे हैं... क्यारियों में रंग-बिरंगे फूल खिले हैं... सच ! कितना प्यारा मौसम है... दिल चाहता है कि कहीं दूर चलें, बहुत दूर... क़ुदरत के बहुत क़रीब... किसी पहाड़ पर... 
  • काली घटाओं से न जाने कौन-सा रिश्ता... जब भी छाई हैं... उम्र के बंजर सहरा में बहार आई है...  
  • फूल पलाश के... कितनी ख़ूबसूरत यादें जुड़ी हैं पलाश के दहकते फूलों से... पलाश के सुर्ख़ फूलों को अपने कमरे में मेज़ पर या फिर खिड़की के पास रखकर उन्हें देर तक निहारना और यह सोचना कि काश इस बार भी वो हमारे लिए फलाश के दहकते फूल लाते... काश... ! 
  • सफ़ेद फूल... सफ़ेद फूलों में तो हमारी रूह बसती है...
  • सुबह-सवेरे उगता सूरत देखना कितना भला लगता है...
  • कुछ चीज़ें, कुछ चेहरे ऐसे हुआ करते हैं, जिन्हें देखकर दिल पुरसुकून हो जाता है, आंखें को ठंडक पहंचती है... तुमको देखा तो ये ख़्याल आया, ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
  • उनका पैग़ाम आया, उनसे मुलाक़ात हुई... वाक़ई आसमान से रहमत बरसी और फ़िज़ा में मुहब्बत घुल गई... हवायें रक्स करने लगीं...

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