मिराती से राष्ट्रपति भवन तक की गाथा
फ़िरदौस ख़ान
महापुरुषों की ज़िन्दगी एक रौशन चिराग़ की तरह होती है, जो दूसरों को रास्ता दिखाने का काम करता है. तभी तो हमारे देश में बचपन से ही बच्चों को महापुरुषों की कहानियां सुनाने की प्रथा रही है. लोककथाओं में भी महापुरुषों के अनेक क़िस्से होते हैं. इन क़िस्सों के ज़रिये नानी-दादी या घर की अन्य बुज़ुर्ग महिलाएं बच्चों को महानता का सबक़ पढ़ाती आई हैं. अमूमन सभी सभ्ताओं के बच्चे अपने देश के महापुरुषों की जीवनियां बचपन में ही सुन लेते हैं. अगर वे इनसे सीख हासिल करते हैं, तो ही जीवनियां उनकी ज़िन्दगी को बेहतरीन बनाने का काम करती हैं. प्रकाशक भी इन जीवनियों के महत्व को समझते हैं, तभी तो किसी भी व्यक्ति के किसी महान ओहदे तक पहुंचने या महानता का कार्य करने पर वे उसकी जीवनी को प्रकाशित करके जनमानस तक पहुंचाने में लग जाते हैं. इसी परंपरा को क़ायम रखते हुए डायमंड बुक्स ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ज़िन्दगी पर आधारित एक किताब प्रकाशित की है, जिसका नाम है महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी. हालांकि प्रणब दा को अपने पदनाम से पहले महामहिम शब्द जोड़ना पसंद नहीं है. इसलिए राष्ट्रपति बनते ही उन्होंने औपनिवेशिक काल के हिज़ एक्सीलेन्सी यानी महामहिम जैसे आदरसूचक शब्दों के इस्तेमाल वाले प्रोटोकॉल में बदलाव करते हुए नए प्रोटोकॉल को औपचारिक मंज़ूरी दी. इसके तहत अब राष्ट्रपति महोदय शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा. उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए माननीय शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा और उनके नाम से पहले श्री या श्रीमती लगाने की हिंदुस्तानी परंपरा को अपनाया जाना चाहिए. राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद उन्होंने कहा था उम्मीदों से ज़्यादा बड़ी है मेरी जीत. जिन लोगों ने पिछले पांच दशकों के दौरान मेरा साथ दिया, उन सभी का शुक्रिया. देश की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा. अलबत्ता इसकी शुरुआत उन्होंने औपनिवेशिक काल के प्रोटोकॉल को बदलने के साथ कर दी है.
प्रणब मुखर्जी का जन्म 11 दिसंबर, 1935 को बंगाल के वीरभूम ज़िले के गांव मिराती में हुआ. उनके पिता काम द किंकर मुखर्जी स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने देश की आज़ादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें दस साल जेल में बिताने पड़े. बाद में वह विधाक बने. प्रणब मुखर्जी को भी देशसेवा के गुण अपने पिता से विरासत में मिले. वह 13 जुलाई, 1957 को सुभम मुखर्जी के साथ प्रणय सूत्र में बंधे. उनके दो बेटे और एक बेटी है. उनके बड़े बेटे अभिजीत मुखर्जी कांग्रेस विधायक हैं. बेटी शर्मिष्ठा कत्थक नृत्यांगना है. प्रणब मुखर्जी ने इतिहास और राजनीति में एमए की डिग्री हासिल की. उन्होंने एलएलबी भी की. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत अध्यापन और पत्रकारिता से की थी. इसके बाद वह सियासत में आ गए. वह 1969 में राज्यसभा के सांसद बने और अपने कार्यों की बदौलत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करते रहे. इंदिरा गांधी ने 1973 में उन्हें अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया. वह फ़रवरी 1973 से अक्टूबर 1974 तक केंद्र में उप मंत्री रहे. फिर वह अक्टूबर 1974 से दिसंबर 1975 तक वित्त राज्यमंत्री बनाए गए. इसके बाद दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक वह राजस्व और बैंकिंग मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे. 1978 में उन्हें कांग्रेस की सर्वोच्च कार्यकारी समिति सीडब्ल्यू में ले लिया गया. उनके कार्यों को देखते हुए इसी साल उन्हें कांग्रेस का कोषाध्यक्ष बना दिया गया. फिर 1980 में उन्हें राज्यसभा में सदन का नेता बना दिया, जिससे उनके सियासी करियर को फ़ायदा हुआ. जनवरी 1980 से जनवरी 1982 तक वह वाणिज्य मंत्री के तौर पर कार्यरत रहे. फिर जनवरी 1982 में उन्हें वित्तमंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया और दिसंबर 1984 तक वह इस पद पर बने रहे. उस वक़्त बनाई गई उनकी नीतियां बहुत सराही गईं.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी और प्रणब मुखर्जी के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं. जब कांग्रेस ने अपना नेता चुनकर प्रधानमंत्री बनाने के लिए पार्टी की बैठक बुलाई तो अन्य पार्टी नेताओं के साथ प्रणब मुखर्जी ने भी राजीव गांधी को पार्टी का नेता चुना. राजीव गांधी प्रधानमंत्री बन गए. बाद में राजीव गांधी ने लोकसभा भंग करवाकर चुनाव करवा दिए. इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर का फ़ायदा कांग्रेस को हुआ और पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई. राजीव गांधी दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन उन्होंने प्रणब मुखर्जी को अपने मंत्रि मंडल में जगह नहीं दी. उनके बीच तल्खी बढ़ती गई. हालत यह हो गई थी कि 1986 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. उन्होंने राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस नाम से एक सियासी दल की स्थापना की. यह कांग्रेस के प्रति उनका प्रेम ही था कि उन्होंने अपनी पार्टी के नाम में कांग्रेस शब्द को शामिल किया. उन्होंने अपनी पार्टी के प्रचार-प्रसार के लिए दिन-रात एक कर दिए, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल सकी. कुछ वक़्त बाद 1988 में राजीव गांधी के कहने पर वह फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए और अपनी पार्टी का भी कांग्रेस में विलय कर लिया. इस दौरान वह राज्यसभा में बने रहे यानी 1975, 1981, 1993 और 1999 में वह राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए. 1993 में जब वह राज्यसभा के सदस्य थे, तब कांग्रेस मंत्रिमंडल में उन्हें केंद्रीय मंत्री बना दिया गया. वह जनवरी 1993 से फ़रवरी 1995 तक वाणिज्य मंत्री रहे. इसी साल उन्हें विदेश मंत्रालय में ले लिया गया. वह फ़रवरी 1995 से मई 1996 तक विदेश मंत्री रहे.
उन्होंने 2004 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वह लोकसभा में सदन के नेता बना दिए गए. वह केंद्रीय मंत्रिमंडल में रक्षा मंत्री बने. 2006 में उन्हें रक्षा मंत्रालय से हटाकर विदेश मंत्री बना दिया गया और मई 2009 तक वह अपने पद पर बने रहे. लेकिन विदेश मंत्रालय के काम में उनकी ख़ास दिलचस्पी नहीं थी. 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जांगीपुर संसदी क्षेत्र से चुनाव जीता. उन्हें फिर से वित्त मंत्रालय का दायित्व संभालने का मौक़ा मिला. वह जून 2012 तक वित्तमंत्री रहे. प्रणब मुखर्जी ऐसे पहले वित्तमंत्री माने जाते हैं, जिन्होंने पहली बार अंतरिम बजट पेश किया. इससे पहले लोकसभा में किसी भी वित्तमंत्री ने अंतरिम बजट पेश नहीं किया था. उन्होंने 2009 में चुनाव से पहले अंतरिम बजट पेश करके नई परंपरा का आग़ाज़ किया, जो उस वक़्त की ज़रूरत थी. चुनाव हुए, कांग्रेस की सरकार बनी और नई सरकार का पहला बजट भी प्रणब मुखर्जी ने ही पेश किया. इसके अलावा वह योजना आयोग के उपाध्यक्ष, अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक तथा अफ्रीकी विकास बैंक के बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स के सदस्य भी रह चुके हैं. यहां भी उन्होंने अपनी क़ाबिलियत का लोहा मनवाया. विभिन्न मंत्रालयों में रहते हुए उन्होंने कई सराहनीय काम किए. उन्होंने केंद्रीय वाणिज्य मंत्री रहते हुए विश्व व्यापार संगठन की सफ़ल स्थापना में विशेष योगदान दिया, जिसे वाणिज्य मंत्रालय की उपलब्धि माना गया. बतौर विदेश मंत्री उन्होंने अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु क़रार कराने और संबंधों को सुधारने में अहम किरदार निभाया. उन्हें सरकार का संकट मोचक भी माना जाता रहा है. जब कभी भी सरकार पर संकट के बादल मंडराये, उन्होंने अपनी सूझबूझ से सरकार को उस परेशानी से उबारा. कांग्रेस ने 13 जून, 2012 को प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया. उन्होंने 22 जुलाई, 2012 को हुए चुनाव में जीत हासिल की और फिर 25 जुलाई को वह भारत के तेरहवें राष्ट्रपति बन गए. \
वह चार दशक से भी ज़्यादा वक़्त तक सक्रिय राजनीति में रहे. अपने छोटे से गांव मिराती से लेकर राष्ट्रपति भवन तक के उनके सफ़र में कई यादगार लम्हे आए. 1984 में उन्हें दुनिया भर के पांच वित्त मंत्रियों की फ़ेहरिस्त में शामिल किया गया. 1997 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के सम्मान से नवाज़ा गया. 2008 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. पुस्तक के संपादक सुदर्शन भाटिया ने इस किताब में प्रणब दा से जुड़ी कई अहम जानकारियां भी दी हैं, जैसे वह दुर्गा के भक्त हैं और नवरात्र में तीन दिन पुरोहित बनकर देवी की पूजा करते रहे हैं. वह तक़रीबन 18 घंटे काम करते हैं. इतनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद वह डायरी लिखना नहीं भूलते. एक साक्षात्कार में न्होंने कहा था कि वह कभी छुट्टियां नहीं मनाते. वह चीनी नेता डेंग जिओपिन से प्रभावित हैं और उनके आदर्शों को ज़िन्दगी में ढालने की कोशिश करते हैं. लेकिन क़द छोटा होने का उन्हें अफ़सोस रहा है. उनका क़द पांच फ़ुट एक इंच है, जो उन्हें कम लगता है. उन्हें फ़ुटबॉल पसंद है और कभी उन्होंने अपने पिता के नाम पर मुर्शिदाबाद में कामद किंकर गोल्ड कप टूर्नामेंट शुरू किया था. उन्हें संगीत सुनने और किताबें पढ़ने का बहुत शौक़ है. अपनी गाड़ी में वह रवीन्द्र संगीत सुनना पसंद करते हैं. इस किताब में प्रणब मुखर्जी से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर भी रौशनी डाली गई है यानी राष्ट्रपति पद की दौ़ड़ में उनसे हारने वाले पीए संगमा के आरोपों और आपत्तियों को भी इसमें शामिल किया गया है. इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की किताब टर्निंग प्वाइंट ए जर्नी थ्रू चैलेंजेज में कांग्रेस एवं यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री पद ठुकराए जाने के वाक़िये का भी ज़िक्र किया गया है. किताब के आख़िरी हिस्से में प्रणब मुखर्जी के सितारों की भी बातें हैं कि किस तरह उनकी कुंडली के मज़बूत ग्रहों ने उन्हें इस देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचाने में अपनी भूमिका निभाई.
बहरहाल, इस किताब के ज़रिये पाठक अपने राष्ट्रपति की ज़िन्दगी के कई पहलुओं से वाक़िफ़ हो जाएंगे. किताब की शैली रोचक है, जिससे पाठकों को इसे पढ़ते हुए अच्छा ही लगेगा.
समीक्ष्य कृति : महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी
लेखक : सुदर्शन भाटिया
प्रकाशक : डायमंड बुक्स
क़ीमत : 125 रुपये
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