भ्रष्टाचार कहां नहीं है...
एक वाक़िया पेश है... कई साल पहले की बात है... एक राष्ट्रीय दैनिक अख़बार ने अपनी प्रसार संख्या बढ़ाने के लिए इनामी योजना शुरू की... बड़े इनामों में एक कार, स्कॊलर्शिप (लाखों में), मोटरसाइकिलें और छोटे इनामों में कांच के चार गिलास शामिल थे... इस इनामी योजना की वजह से अख़बार की प्रसार संख्या काफ़ी बढ़ गई... ये इनाम जिन्हें मिलने थे, उन्हें ही मिले... यानी कार मिली अख़बार के मालिक के दामाद को... स्कॊलर्शिप मिली अख़बार के मालिक के चहेते संपादक के भतीजे को (क्योंकि तब संपादक की इकलौती संतान गोद में थी), मोटरसाइकिलें मिलीं अख़बारों के उन एजेंटों को, जो मोटी रक़म के विज्ञापन लाते थे...
अब बचे गिलास, तो कुछ गिलास अख़बार में काम करने वालों ने अपने परिचितों को दिलवा दिए... और बचे-खुचे गिलास पाठकों को इनाम के तौर पर दे दिए गए...
हर जगह यही हाल है...
अब बचे गिलास, तो कुछ गिलास अख़बार में काम करने वालों ने अपने परिचितों को दिलवा दिए... और बचे-खुचे गिलास पाठकों को इनाम के तौर पर दे दिए गए...
हर जगह यही हाल है...
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