किताबे-इश्क़ की पाक आयतें...
मेरे महबूब
मुझे आज भी याद हैं
वो लम्हे
जब तुमने कहा था-
तुम्हारी नज़्में
महज़ नज़्में नहीं हैं
ये तो किताबे-इश्क़ की
पाक आयतें हैं...
जिन्हें मैंने हिफ़्ज़ कर लिया है...
और
मैं सोचने लगी-
मेरे लिए तो
तुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
कलामे-इलाही की मानिंद है
जिसे मैं कलमे की तरह
हमेशा पढ़ते रहना चाहती हूं...
-फ़िरदौस ख़ान
शब्दार्थ हिफ़्ज़ - याद करना
*तस्वीर गूगल से साभार
29 दिसंबर 2010 को 10:19 pm बजे
वाह कितनी पाक साफ़ सी नज़्म .एकदम दुआ जैसी.
30 दिसंबर 2010 को 7:33 am बजे
आदरणीय फ़िरदौस ख़ान जी
नमस्कार !
भावपूर्ण अभिव्यक्ति... मन को छू गई आपकी कविता...
30 दिसंबर 2010 को 9:51 am बजे
बहुत सुन्दर कबिता सारगर्भित प्रभावित करने वाली.बहुत अच्छा लगा ---- बहुत-बहुत धन्यवाद.
30 दिसंबर 2010 को 11:04 am बजे
तुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
कलामे-इलाही की मानिंद है
जिसे मैं कलमे की तरह
हमेशा पढ़ते रहना चाहती हूं...
बहुत खूबसूरती से कहा गया हर शब्द दिल में उतरता चला गया ...।
30 दिसंबर 2010 को 1:29 pm बजे
अब क्या कहे इसके आगे ……………जब इश्क ही कलमा बन जाये फिर कहने को क्या बचा…………बेहतरीन प्रस्तुति।
30 दिसंबर 2010 को 3:19 pm बजे
बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति है
30 दिसंबर 2010 को 9:43 pm बजे
एक सच्ची नज़्म की तरह
एक सच्ची नज़्म ...
वाह !
HAPPYNEWYEAR-2011.
31 दिसंबर 2010 को 9:11 pm बजे
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
31 दिसंबर 2010 को 11:01 pm बजे
हम भी हिफ्ज करना चाहते हैं
एक हिन्दी ब्लॉगर पसंद है
1 जनवरी 2011 को 12:32 am बजे
बहुत खूब , सु्बहान अल्लाह..
1 जनवरी 2011 को 4:22 pm बजे
नया वर्ष आपके जीवन में सुख एवं समृद्धि लाये।
1 जनवरी 2011 को 8:36 pm बजे
आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .
2 जनवरी 2011 को 11:17 am बजे
यक़ीन मानो फ़िरदौस हमें तुम्हारी ग़ज़लें और नज़्में हिफ्ज़ हैं. पता नहीं क्यों हम इनमें ख़ुद को तलाशते रहते हैं. शायद यह आपके कलाम की ही शिद्दत है, जो रूह की गहराई में उतर जाता है.
2 जनवरी 2011 को 9:32 pm बजे
bahot achcha likhtin hain aap.
13 जनवरी 2011 को 10:01 pm बजे
फ़िरदौस
हम आपको यूं ही हुस्न और कलाम की मलिका नहीं कहते.......पाकीज़गी, इबादत और मुहब्बत....... आपके कलाम में हमेशा देखने को मिलती हैं.......आपने इश्क़ को इबादत दर्जा दे दिया है.......सच, हमें रश्क होता है उस शख्स से, जिसे तसव्वुर में रखकर आप कलाम कहती हैं.......
15 जनवरी 2011 को 6:31 pm बजे
एक सुन्दर दिल की स्वामिनी की एक और सुन्दर रचना
15 जनवरी 2011 को 6:55 pm बजे
" अपने महबूब का हर लफ़्ज ....याद आता है ...
हिफ़्ज कर लिया है --हर पल,हर लम्हा...
क्योंकि वो पाक है उतना ही---जितनी कि कुरान की आयत...
या कहूँ पवित्र भी उतना ही---जितनी कि गीता की इबादत....
भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए आभार.....
14 जनवरी 2012 को 4:42 pm बजे
तुम्हारा हर लफ़्ज़ ही
कलामे-इलाही की मानिंद है
जिसे मैं कलमे की तरह
हमेशा पढ़ते रहना चाहती हूं..
वाह ... बहुत सुन्दर ..