उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए...
कुछ ख़्वाब इस तरह से जहां में बिखर गए
अहसास जिस क़द्र थे वो सारे ही मर गए
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बग़ैर कितने ज़माने गुज़र गए
माज़ी किताब है या अरस्तु का फ़लसफ़ा
औराक़ जो पलटे तो कई पल ठहर गए
कब उम्र ने बिखेरी है राहों में कहकशां
रातें मिली स्याह, उजाले निखर गए
सहरा में ढूंढते हो घटाओं के सिलसिले
दरिया समन्दरों में ही जाकर उतर गए
कुछ कर दिखाओ, वक़्त नहीं सोचने का अब
शाम हो गई तो परिंदे भी घर गए
'फ़िरदौस' भीगने की तमन्ना ही रह गई
बादल मेरे शहर से न जाने किधर गए
-फ़िरदौस ख़ान
2 जून 2010 को 9:44 am बजे
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html
आप अपनी अनमोल प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित कर हौसला बढाईयेगा
सादर ।
2 जून 2010 को 9:44 am बजे
आप की ग़ज़ल दिल में हलचल पैदा करती है.मैं यह बिलकुल नहीं कहूँगा की आप दनादन लिखिए.बस "आँखों में उजाले" यों ही रोशन रहें.
2 जून 2010 को 10:12 am बजे
waah Firdaus ji pehli baar aaya hun aapke blog par aur ek shandar nazm padhne mili,,,aur haan aapko janmdivas ki shubhkamnayein ..ek din late ho gaya
2 जून 2010 को 11:22 am बजे
"बादल मेरे शहर से जाने किधर गए...."
पता नहीं क्या सोच रहा हूँ जब से इस पंक्ति को पढ़ा है.....
कई दिनों से आपकी कमी महसूस की गयी जी हमारे ब्लॉग पर....
कुंवर जी,
2 जून 2010 को 11:50 am बजे
बहुत सुंदर भाव.
2 जून 2010 को 12:48 pm बजे
वाह...........बहुत ही सुन्दर ..........हर शेर दिल मे उतरता चला गया.
2 जून 2010 को 12:51 pm बजे
ख़ारिज़ करें चलो अब इन आवारा बादलों को,
अपनी अतल गहराइयों के पानी में उतर के...
2 जून 2010 को 2:02 pm बजे
har sher behad khubsurat hua.. bahut hi sundar
2 जून 2010 को 2:40 pm बजे
लाजवाब गज़ल
2 जून 2010 को 3:43 pm बजे
बहुत उम्दा शेर निकाले हैं..लाजबाब!
2 जून 2010 को 4:31 pm बजे
एक और अच्छी पोस्ट के साथ आपने अपनी योग्यता साबित की । और हर बार की तरह हम भी आपके हर अच्छी पोस्ट और हर अच्छे काम मे साथ है और आगे भी रहेंगे
2 जून 2010 को 5:14 pm बजे
सादर !
बहुत ही लाजबाब !
आखिरी नहीं है मौज, फिर टूटीं हैं कस्तिया
उजड़ेंगी शायद आज, कुछ और बस्तियां
गर है तुम्हे यकीन उस की रहमत पे
पतवार बन जाएँगी किस्मत की तख्तियां
रत्नेश त्रिपाठी
2 जून 2010 को 5:22 pm बजे
मन के तारों को झंकृत कर गयी आपकी गजल।
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क्या आप जवान रहना चाहते हैं?
ढ़ाक कहो टेसू कहो या फिर कहो पलाश...
2 जून 2010 को 6:17 pm बजे
कहीं यह गजल उनके लिए तो नहीं जिन्हें हम जानते नहीं
2 जून 2010 को 9:12 pm बजे
कमाल का लिखती हैं आप ! हार्दिक शुभकामनाएं !
3 जून 2010 को 12:12 am बजे
हमने तुमको भुलाना तो चाहा मगर भुला न सके
परसों जन्मदिन था तुम्हारा हमें कहा सबने जिधर भी गये
बधाई बेमिसाल की तरफ से दूसरी बार
3 जून 2010 को 3:10 am बजे
लिखा वही सफ़ल होता है जो किसी के दिल को गहराई तक छू जाए.....एक एक शेर मन मे उतर गया..
3 जून 2010 को 6:46 am बजे
"भीगने की तमन्ना ही रह गई, बादल मेरे शहर से न जाने किधर गये।"
वाह-वाह, आखिरी दो पंक्तियों में गजल की सारी खूबसूरती सिमट गयी।
3 जून 2010 को 4:51 pm बजे
जीना मुहाल था जिसे देखे बिना कभी
उसके बगैर कितने ज़माने गुजर गए
यूं ही ज़माने गुज़र जाते हैं मगर उसकी याद, कभी न कभी देखने की उम्मीद
हौसला देती है जीने का वरना तो.......
कितना मुश्किल होता है देखे बिना जीना यह वही समझ सकता है
जिसे अहसास हुआ हो.............
छू गयी
दिल को
हमेशा की तरह......
4 जून 2010 को 3:21 pm बजे
bhaut acchigazal hai'
5 जून 2010 को 9:15 pm बजे
kuchh behad achhe sher...bahut khoob
5 जून 2010 को 10:22 pm बजे
लंबे समय बाद कुछ नया मिला है
5 जून 2010 को 10:53 pm बजे
bahut khubsurat.
6 जून 2010 को 12:01 am बजे
8 जून 2010 को 3:03 pm बजे
एक एक शेर मन मे उतर गया..
12 जून 2010 को 10:42 pm बजे
हमेशा की तरह वैसी ही खूबसूरत ग़ज़ल ! शुभकामनायें आपको !!
17 जून 2010 को 5:51 pm बजे
bahut hee sundar, kamaal ka likha hai aap ne, aisa laga ki koi mujhe mere hee man kee baat suna raha ho. mumkin ho to pls mujhe apana link bhejiyega. aisee achchhee rachnaen bhala kaun padhana naheen chahega.
www.mainratnakar.blogspot.com