बस, एक घर ऐसा हो...
घर
एक घर ऐसा हो
जिसकी बुनियाद
खुलूस की ईंटों से बनी हो
जिसके आंगन में
बेला और मेहंदी महकती हों
जिसकी क्यारियों में
रफ़ाक़तों के फूल खिलते हों
जिसकी दीवारें
क़ुर्बतों की सफ़ेदी से पुती हों
जिसकी छत पर
दुआएं
चांद-सितारे बनकर चमकती हों
जिसके दालान में
हसरतें अंगड़ाइयां लेती हों
जिसके दरवाज़ों पर
उम्र की हसीन रुतें
दस्तक देती हों
जिसकी खिड़कियों में
बच्चों-सी मासूम ख़ुशियां
मुस्कराती हों
और
जिसकी मुंडेरों पर
अरमानों के परिन्दे चहकते हों
बस, एक घर ऐसा हो
-फ़िरदौस ख़ान
Courtesy : Image Mikki Senkarik
23 मई 2009 को 5:55 pm बजे
tassavur ko mintne na dijiye.
23 मई 2009 को 6:12 pm बजे
सभी सहजता से मिलें आपस में हो प्यार।
सचमुच घर होता वही न होती तकरार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.
23 मई 2009 को 8:15 pm बजे
haan sachmuch aisa hi to ghar hota hai
aisa hi to socha tha
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
6 जून 2009 को 12:43 am बजे
behtreen
24 मार्च 2012 को 10:04 am बजे
Shukriya in khoobsoorat lafzon ke liye...!