तुम क्यूं चले जाते हो, मुझसे दूर, बहुत दूर...
ऐ दोस्त !
तुम क्यूं चले जाते हो
मुझसे दूर, बहुत दूर...
अकसर
उस वक़्त
जब मुझे
तुम्हारी बहुत ज़रूरत होती है...
-फ़िरदौस ख़ान
तुम क्यूं चले जाते हो
मुझसे दूर, बहुत दूर...
अकसर
उस वक़्त
जब मुझे
तुम्हारी बहुत ज़रूरत होती है...
-फ़िरदौस ख़ान
14 अक्तूबर 2008 को 11:03 am बजे
तभी तो दोस्ती की अहमियत पता चलती है :) अच्छे लफ्ज हैं
14 अक्तूबर 2008 को 12:43 pm बजे
बढिया रचना है।
14 अक्तूबर 2008 को 2:15 pm बजे
फिरदौस जी,
छोटी किन्तु गम्भीर रचना। बधाई। दीप्ती मिश्रा कहती हैं-
दोस्त बनकर दुश्मनों सा वो सताता है मुझे।
फिर भी उस जालिम पे मरना अपनी फितरत है तो है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
16 अक्तूबर 2008 को 11:23 am बजे
ऐसा ही होता है...
21 अक्तूबर 2008 को 4:13 pm बजे
बेहतर होगा अगर इसके लिए दोस्त के बजाये नसीब को जिम्मेदार समझा जाए ..... कुछ तो मजबूरियां रही होंगी कोई यूँ ही बेवफा नहीं होता ...........
वैसे भी इस शिकायत के साथ जीने वाले ज़माने में बहुत हैं.