चैन कब पाया है मैंने ये न पूछो मुझसे
तेरी ख़ामोश निगाहों में अया होता है
मुझको मालूम है उल्फ़त का नशा होता है
मुझसे मिलता है वो जब भी मेरे हमदम की तरह
उसकी पलकों पे कोई ख़्वाब सजा होता है
चैन कब पाया है मैंने ये न पूछो मुझसे
मैं करूं शिकवा तो नाराज़ ख़ुदा होता है
हाथ भी रहते हैं साये में मेरे आंचल के
जब हथेली पे तेरा नाम लिखा होता है
-फ़िरदौस ख़ान
मुझको मालूम है उल्फ़त का नशा होता है
मुझसे मिलता है वो जब भी मेरे हमदम की तरह
उसकी पलकों पे कोई ख़्वाब सजा होता है
चैन कब पाया है मैंने ये न पूछो मुझसे
मैं करूं शिकवा तो नाराज़ ख़ुदा होता है
हाथ भी रहते हैं साये में मेरे आंचल के
जब हथेली पे तेरा नाम लिखा होता है
-फ़िरदौस ख़ान
11 अक्तूबर 2008 को 11:12 am बजे
मुझसे मिलता है वो जब भी मेरे हमदम की तरह
उसकी पलकों पे कोई ख़्वाब सजा होता है
चैन कब पाया है मैंने ये न पूछो मुझसे
मैं करूं शिकवा तो नाराज़ ख़ुदा होता है
बेहतरीन ग़ज़ल है...आपको पढ़ना आदत में शुमार हो गया है...
11 अक्तूबर 2008 को 11:21 am बजे
क्या बात बहुत खूब । मस्त लिखा है । धन्यवाद
11 अक्तूबर 2008 को 11:34 am बजे
हाथ भी रहते हैं साये में मेरे आंचल के
जब हथेली पे तेरा नाम लिखा होता है
bahut khuub
11 अक्तूबर 2008 को 11:45 am बजे
चैन कब पाया है मैंने ये न पूछो मुझसे
मैं करूं शिकवा तो नाराज़ ख़ुदा होता है
'wah kya khayalat hain behtreen'
regards
11 अक्तूबर 2008 को 3:30 pm बजे
vah kya baat hai. bhut sundar rachana. likhte rhe.
thanks mere blog ka link lagane v tipani dene ke liye. par kabhi kabhi hamari kavitaye bhi padh liya kare.
11 अक्तूबर 2008 को 5:39 pm बजे
"मुझसे मिलता है वो जब भी मेरे हमदम की तरह
उसकी पलकों पे कोई ख़्वाब सजा होता है"
फिरदौस जी इश्क की समझ किसे होती है,,,सभी बस ख़्वाबों को
पलकों पे सजाए इश्क करने चले आते हैं कोई भी आशनाई हमने पाकीजा
नहीं देखी ............ सभी सूफी हो भी नहीं सकता इश्क-ए-हक़िक़ी सबके बस की बात कहाँ
फिरदौस
शुक्रिया लिंक के लिए
11 अक्तूबर 2008 को 5:41 pm बजे
.. सभी सूफी हो भी नहीं सकता इसे यूँ पढिए ''सभी सूफी हो भी नहीं सकते ''
12 अक्तूबर 2008 को 8:47 am बजे
sahi kaha hai aapme apne ghazal mai
12 अक्तूबर 2008 को 8:48 am बजे
mizaz kafi ashqana lagta hai mohtrma ka