तुम्हारे इंतज़ार में...


मैंने
कितने ही ख़त लिखे
तुम्हें बुलाने के लिए
मगर
तुम न आए
तुम्हारे इंतज़ार से ही
मेरी सहर की इब्तिदा होती
दोपहर ढलती
और फिर
शाम की लाली की तरह
तुमसे मिलने की
मेरी ख़्वाहिश भी शल हो जाती
सारे अहसासात दम तोड़ चुके होते
लेकिन
उम्मीद की एक नन्ही किरन
मेरी उंगली थामकर
मुझे, रात की तारीकियों से दूर, बहुत दूर...
दिन के पहले पहर की चौखट तक ले आती
और फिर
मेरी नज़रें राह में बिछ जातीं
तुम्हारे इंतज़ार में...
-फ़िरदौस ख़ान
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

8 Response to "तुम्हारे इंतज़ार में..."

  1. Unknown says:
    10 सितंबर 2008 को 10:14 am बजे

    मैंने
    कितने ही ख़त लिखे
    तुम्हें बुलाने के लिए
    मगर
    तुम न आए
    तुम्हारे इंतज़ार से ही
    मेरी सहर की इब्तिदा होती
    दोपहर ढलती
    और फिर
    शाम की लाली की तरह
    तुमसे मिलने की
    मेरी ख्वाहिश भी शल हो जाती
    सारे अहसासात दम तोड़ चुके होते

    बहुत ख़ूब...लफ्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी...

  2. rakhshanda says:
    10 सितंबर 2008 को 10:43 am बजे

    शाम की लाली की तरह
    तुमसे मिलने की
    मेरी ख्वाहिश भी शल हो जाती
    सारे अहसासात दम तोड़ चुके होते
    लेकिन
    उम्मीद की एक नन्ही किरन
    मेरी उंगली थामकर
    मुझे, रात की तारीकियों से दूर, बहुत दूर...
    दिन के पहले पहर की चौखट तक ले आती
    और फिर
    मेरी नज़रें राह में बिछ जातीं
    तुम्हारे इंतज़ार में...

    bahut khoob fidous ji, first time aapko padha, bahut khoobsoorat

  3. संगीता पुरी says:
    10 सितंबर 2008 को 11:37 am बजे

    आपकी कविताएं अच्छी रहती है। धन्यवाद।

  4. फ़िरदौस ख़ान says:
    10 सितंबर 2008 को 11:41 am बजे

    मौसम के सईद साहब, रक्षंदा जी और संगीता पुरी जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया...

  5. विवेक सिंह says:
    10 सितंबर 2008 को 11:43 am बजे

    पढ कर आनन्द आ गया . लिखते रहें . आभार !

  6. डॉ .अनुराग says:
    10 सितंबर 2008 को 12:11 pm बजे

    तुम्हारे इंतज़ार से ही
    मेरी सहर की इब्तिदा होती
    दोपहर ढलती
    और फिर
    शाम की लाली की तरह
    तुमसे मिलने की
    मेरी ख्वाहिश भी शल हो जाती


    लगा इस नज़्म को तुम कोई ओर मोड़ भी दे सकते थे ......पर एक बेहतरीन नज़्म......

  7. रंजू भाटिया says:
    10 सितंबर 2008 को 12:51 pm बजे

    अच्छी लगी आपकी यह रचना

  8. Udan Tashtari says:
    10 सितंबर 2008 को 8:05 pm बजे

    बहुत उम्दा, क्या बात है!आनन्द आ गया.

    -----------------
    आपके आत्मिक स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.

एक टिप्पणी भेजें