तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं...

तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
क्यूंकि
तुम्हारी तहरीर का
हर इक लफ़्ज़
डूबा होता है
जज़्बात के समंदर में
और मैं
जज़्बात की इस ख़ुनक (ठंडक ) को
उतार लेना चाहती हूं
अपनी रूह की गहराई में
क्यूंकि
मेरी रूह भी प्यासी है
बिल्कुल मेरी तरह
और ये प्यास
दिनों या बरसों की नहीं
बल्कि सदियों की है
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं
क्यूंकि
तुम्हारी तहरीर का
हर इक लफ़्ज़
अया होता है
उम्मीद की सुनहरी किरनों से
और मैं
इन किरनों को अपने आंचल में समेटे
चलती रहती हूं
उम्र की उस रहगुज़र पर
जो हालात की तारीकियों से दूर
बहुत दूर जाती है
सच !
तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं...
-फ़िरदौस ख़ान
  • Digg
  • Del.icio.us
  • StumbleUpon
  • Reddit
  • Twitter
  • RSS

4 Response to "तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं..."

  1. अमिताभ मीत says:
    8 सितंबर 2008 को 11:51 am बजे

    Padha. Kuchh kehna nahiN hai .... baar baar padh rahaa huuN ...

  2. Unknown says:
    8 सितंबर 2008 को 12:33 pm बजे

    very good keep it up

  3. डॉ .अनुराग says:
    8 सितंबर 2008 को 2:04 pm बजे

    तुम्हारी तहरीर का
    हर इक लफ्ज़
    अया होता है
    उम्मीद की सुनहरी किरनों से
    और मैं
    इन किरनों को अपने आंचल में समेटे
    चलती रहती हूं
    उम्र की उस रहगुज़र पर
    जो हालात की तारीकियों से दूर
    बहुत दूर जाती है
    सच !
    तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं...

    ओह....कैसे समेटा है आपने लफ्जों को.....बेहतरीन.......मुकम्मल नज़्म...

  4. Unknown says:
    9 सितंबर 2008 को 8:18 am बजे

    क्यूंकि
    तुम्हारी तहरीर का
    हर इक लफ्ज़
    डूबा होता है
    जज़्बात के समंदर में
    और मैं
    जज़्बात की इस खुनक (ठंडक ) को
    उतार लेना चाहती हूं
    अपनी रूह की गहराई में
    क्यूंकि
    मेरी रूह भी प्यासी है
    बिल्कुल मेरी तरह
    और ये प्यास
    दिनों या बरसों की नहीं
    बल्कि सदियों की है
    तुम्हारे ख़त मुझे बहुत अच्छे लगते हैं

    इस नज़्म को जितनी बार पढ़ता हूं...इसे पढ़ने की ख्वाहिश बढ़ती ही जाती है...

एक टिप्पणी भेजें