आख़िर आग और राई के दानों का रहस्य क्या था
फ़िरदौस ख़ान
विज्ञान और तर्कों के परे भी बहुत कुछ ऐसा है, जिस पर हम तब तक यक़ीन नहीं करते, जब तक अपनी आंखों से न देख लें...
बात हमारे बचपन की है... घर के पास एक बेकरी थी... हमारे यहां ब्रेड, समौसे और बिस्किट वहीं से आया करते थे... एक रोज़ बेकरी वाले ने पापा से कहा कि वह बहुत परेशान है... दो दिन से उसने कई मन लकड़ियां भट्ठी में फूंक दीं, इसके बावजूद भट्ठी में इतनी भी आंच नहीं हो पा रही है कि बिस्किट तक सिक सकें... उसने भट्ठी में बहुत सी लकड़ियां डालीं, आग की लपटें उठने लगीं, कोयले दहक के अंगारा बन गए... बिस्किट का पतरा भट्ठी के अंदर रखा गया, कुछ देर बाद उसे बाहर निकाला, तो बिस्किट कच्चे के कच्चे... उन्हें ज़रा भी आंच नहीं लगी...
फिर एक सयाने को बुलाया गया... उसने हाथ में राई के कुछ दाने लिए, कुछ पढ़ा और दानों पर दम करके भट्ठी में झोंक दिया... फिर बिस्किट का पतरा भट्ठी में रखा गया... पतरा बाहर आया, तो सभी बिस्किट सिके हुए थे...
भट्ठी में इतनी ढेर सारी लकड़ियां फूंक देने के बावजूद उसमें इतनी भी आंच क्यों नहीं हो पा रही थी कि बिस्किट सिक जाएं...
आख़िर राई के उन दानों पर ऐसा क्या पढ़कर फूंका गया था कि उनके भट्ठी में डालते ही इतनी आंच हो गई कि बिस्किट सिक गए...
आख़िर ये क्या रहस्य है... ?
30 मई 2016 को 1:33 pm बजे
जो खुल न पाए वही तो रहस्य है..