चांद...
फ़िरदौस ख़ान
लड़की दिनभर बेसब्री से रात का इंतज़ार करती... एक एक पल उसे सदियों की तरह लगता... लेकिन जैसे-जैसे शाम होती और आसमान स्याह होने लगता उसके चेहरे पर रौनक़ छा जाती... लड़की दौड़ कर छत पर आती... आसमान में चमकते चांद को निहारने लगती... उसकी दूधिया चांदनी में अपना रोम-रोम भिगो लेना चाहती... वो जानती थी कि चांद उससे बहुत दूर है, इतनी दूर कि वो उस तक कभी पहुंच नहीं सकती... लेकिन इसके बावजूद उसे चांद से इश्क़ था... जितनी देर वो चांद के पास होती, उसे लगता कि वो लम्हे उसने जी लिए हैं... और वो अपनी ज़िन्दगी को भरपूर जी लेना चाहती थी...
जिस रोज़ आसमान में बादल छा जाते, वो उदास हो जाती... वो बादलों के छंटने का बेसब्री से इंतज़ार करती... दुआएं मांगती... कई मर्तबा इसी तरह रात गुज़र जाती, लेकिन लड़की जागती रहती... चांद को देखे बिना उसे नींद न आती... लेकिन चांद, तो चांद था... वो अपने वक़्त पर आता... चांदनी बिखेरता और चला जाता... ये अलग बात थी कि बादलों की वजह से न वो चांद को देख पाती और न ही उसकी चांदनी में भीग पाती...
बीच में अमावस भी आती... इस बार अमावस न जाने कितने दिन की है... चांद कब आएगा... लड़की नहीं जानती... बस हर पल उसे चांद का इंतज़ार है...
तस्वीर :गूगल से साभार
13 नवंबर 2014 को 2:28 pm बजे
बेहतरीन रचना उतने ही खूबसूरत भाव.
13 नवंबर 2014 को 6:47 pm बजे
मुझे तो लगा जैसे वो मैं ही था ।