एक तसव्वुर... एक अहसास...


  • कितना खु़शनुमा अहसास है... मेरी रूह जिस्म की क़ैद से आज़ाद हो चुकी है... अब न कोई बंधन है और न ही कोई दुख-तकलीफ़... सबकुछ कितना भला लग रहा है... मैं समंदर पर दौड़ सकती हूं... ज़मीन की तह में उतर सकती हूं और आसमान की बुलंदियों को छू सकती हूं... पर मैं तन्हा हूं... तन्हा... तन्हा तो मैं पहले भी थी... वो भीड़ की तन्हाई थी और ये अकेले होने की तन्हाई है... पर मैं ख़ुश हूं... 
  • इंसान ज़िंदगी में बहुत थोड़ा चाहता है... लेकिन उसे बहुत थोड़ा नहीं मिलता, जो वह चाहता है... फिर वह बहुत ज़्यादा चाहने लगता है और उसे बहुत ज़्यादा मिल भी जाता है... लेकिन बहुत थोड़े की कमी उसे ज़िंदगी भर खलती है...
  • मुसीबत के वक़्त तो ख़ुदा भी साथ छोड़ देता है... फिर इंसानों से कोई क्या शिकवा-शिकायत करे... 
  • जिस शख़्स की सारी ज़िन्दगी क़ुदरती आज़माइश में ही बीत जाए... अपनी ज़िन्दगी के अज़ाब होने पर वह भला किससे शिकवा-शिकायत करे...
  • हर इंसान की अपनी-अपनी मजबूरियां हुआ करती हैं... इंसान को उम्रभर इन्हीं मजबूरियों के साथ रहना होता है... यही तो ज़िंदगी है... 
  • ज़िन्दगी भी अजीब शय है... अकसर खु़शियों की तमन्ना में ही बीत जाती है... 
  • ज़िन्दगी में जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत हुआ करती है, वही सबसे ज़्यादा दूर होता है...
  • ख़ुशियां सबको रास नहीं आया करतीं... 
  • सबसे आसान होता है, बिन बताए किसी की ज़िन्दगी से यूं चले जाना...
  • जो अपने होते हैं, वो छोड़ कर कभी नहीं जाया करते...
  • अपने ही सबसे ज़्यादा तकलीफ़ पहुंचाते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम होता है कि हम कितने टूटे हुए हैं और उनकी एक ही चोट से ज़र्रा ज़रा होकर बिखर जाएंगे...
  • उम्र अकसर अच्छे वक़्तों की तमन्ना में ही बीत जाया करती है... 
(हमारी एक कहानी से)


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1 Response to "एक तसव्वुर... एक अहसास..."

  1. computer hardware chip level says:
    10 जनवरी 2015 को 6:04 pm बजे

    ............बहुत सुन्दर !!
    एक बार यहाँ भी पधारे !!!!

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