नज़्म
गर्मियों का मौसम भी
बिलकुल
ज़िन्दगी के मौसम-सा लगता है...
भटकते बंजारे से
दहकते आवारा दिन
और
विरह में तड़पती जोगन-सी
सुलगती लम्बी रातें...
काश!
कभी ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाए
बरसात का मौसम... -फ़िरदौस ख़ान
काश ज़िन्दगी के आंगन में आकर ठहर जाये... बरसात का मौसम आपका लेखन, ये शैली....और शब्दों को इतने खूबसूरत अंदाज़ में पेश करने का फ़न.... आपकी नज़्मों का इंतज़ार करने पर मजबूर कर देता है.
माहिर हैं आप नज़्म कहने के फन में खुबसूरत बातें करतीं है आप अपनी नज्मों में और तभी सही है के आप बातें वो करें जो आम इंसान तक आपकी बातें पहुंचे! आपको badhaaee...
काश! कभी ज़िन्दगी के आंगन में आकर ठहर जाए बरसात का मौसम... हमेशा की तरह आपका सबसे जुदा अंदाज़..... हम जब भी आपकी नज़्में पढ़ते हैं..... बेचैन हो उठते हैं....और यह बेचैनी एक लंबे अरसे तक महसूस करते हैं....
शायरा, लेखिका और पत्रकार. लोग लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी कहते हैं.
उर्दू, हिन्दी, इंग्लिश और पंजाबी में लेखन. दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दीं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का सम्पादन किया. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण. ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लेखन. फ़हम अल क़ुरआन लिखा. सूफ़ीवाद पर 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए अनेक पुरस्कारों ने सम्मानित. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत की. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम ली. फ़िलहाल 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक हैं.
अपने बारे में एक शेअर पेश है- नफ़रत, जलन, अदावत दिल में नहीं है मेरे
अख़लाक़ के सांचे में अल्लाह ने ढाला है…
हमारा जन्मदिन
-
कल यानी 1 जून को हमारा जन्मदिन है. अम्मी बहुत याद आती हैं. वे सबसे पहले
हमें मुबारकबाद दिया करती थीं. वे बहुत सी दुआएं देती थीं. उनकी दुआएं हमारे
लिए किस...
میرے محبوب
-
بزرگروں سے سناہے کہ شاعروں کی بخشش نہیں ہوتی وجہ، وہ اپنے محبوب کو
خدا بنا دیتے ہیں اور اسلام میں اللہ کے برابر کسی کو رکھنا شِرک یعنی ایسا
گناہ مانا جات...
27 सूरह अन नम्ल
-
सूरह अन नम्ल मक्का में नाज़िल हुई और इसकी 93 आयतें हैं.
*अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. ता सीन. ये
क़ुरआन और रौशन किताब की आयतें...
Rahul Gandhi in Berkeley, California
-
*Firdaus Khan*
The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute
of International Studies at UC Berkeley, California on Monday. He...
इस ब्लॉग की सभी रचनाओं के सर्वाधिकार सुरक्षित हैं...किसी भी वेबसाइट, समाचार-पत्र या पत्रिका को कोई भी रचना लेने से पहले इजाज़त लेना ज़रूरी है...संपर्कfirdaus.journalist@gmail.com
फ़िरदौस ख़ान
इस बलॊग में ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं
30 मार्च 2010 को 8:02 pm बजे
BAHUT SUNDAR RACHANA
SHEKHAR KUMAWAT
http://rajasthanikavitakosh.blogspot.com/
30 मार्च 2010 को 9:17 pm बजे
Kya bat hai FIRDAUS ji . bahut acchi lagi aapki ye Najjm
30 मार्च 2010 को 10:19 pm बजे
अभी तो तपन ही तपन है अगन है और जलन है -बरखा बहार तो बहुत दूर है -अच्छी कविता !
30 मार्च 2010 को 11:32 pm बजे
वाह ....Firdaus जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
30 मार्च 2010 को 11:34 pm बजे
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
31 मार्च 2010 को 12:57 am बजे
काश ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाये... बरसात का मौसम
आपका लेखन, ये शैली....और शब्दों को इतने खूबसूरत अंदाज़ में पेश करने का फ़न....
आपकी नज़्मों का इंतज़ार करने पर मजबूर कर देता है.
2 अप्रैल 2010 को 8:43 pm बजे
काश
ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाए
बरसात का मौसम...
मोहतरमा, जवाब नहीं आपका. शाहिद साहब से सहमत हैं.....
हमें भी आपकी नज़्मों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.....
4 अप्रैल 2010 को 10:42 pm बजे
माहिर हैं आप नज़्म कहने के फन में खुबसूरत बातें करतीं है आप अपनी नज्मों में और तभी सही है के आप बातें वो करें जो आम इंसान तक आपकी बातें पहुंचे!
आपको badhaaee...
अर्श
6 अप्रैल 2010 को 8:13 am बजे
काश!
कभी ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाए
बरसात का मौसम...
हमेशा की तरह आपका सबसे जुदा अंदाज़.....
हम जब भी आपकी नज़्में पढ़ते हैं.....
बेचैन हो उठते हैं....और यह बेचैनी एक लंबे अरसे तक महसूस करते हैं....
28 मार्च 2012 को 9:15 pm बजे
क्या बात है! आज फेसबुक पर अविनाश वाचस्पतिजी ने यह नज्म लगाई थी, वहीं से पीछा करते-करते यहां तक आ गई। बहुत बढ़िया..