ईद का चांद देखकर...तुमसे मिलने की दुआ मांगी थी...
ये ईद का चांद भी माज़ी के जज़ीरे से कितनी यादों को बुला लाता है...
नज़्म
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
कितने अश्क
मेरी आंखों में
भर आए थे...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
कितनी यादें मेरे तसव्वुर में
उभर आईं थीं...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
कितने ख़्वाब
इन्द्रधनुषी रंगों से
झिलमिला उठे थे...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
मेरी हथेलियों की हिना
ख़ुशी से
चहक उठी थी...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
शब की तन्हाई
सुर्ख़ गुलाबों-सी
महक उठी थी...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
-फ़िरदौस ख़ान
तस्वीर गूगल से साभार
20 सितंबर 2009 को 11:55 pm बजे
ईद मुबारक
21 सितंबर 2009 को 12:22 am बजे
खूबसूरत अशआरों के लिये बधाई..ईद के चाँद की बधाई के साथ
21 सितंबर 2009 को 6:20 am बजे
सुंदर रचना है .. ईद मुबारक !!
21 सितंबर 2009 को 7:58 am बजे
फिर से आयी ईद ...फिर कर लीजिये तमन्ना
ईद मुबारक ..!!
21 सितंबर 2009 को 3:32 pm बजे
ईद मुबारक हो आपको बहुत ही खुबसूरत
21 सितंबर 2009 को 4:39 pm बजे
बहुत खूब.. ईद मुबारक
21 सितंबर 2009 को 5:13 pm बजे
उसी लम्हा
मेरी हथेलियों की हिना
ख़ुशी से
चहक उठी थी.
वाह ! ईद के चाँद के साथ मांगी गयी दुआएं कबूल होती हैं.... ऐसी दुआएं तो कबूल ही होनी चाहियें..
ईद मुबारक हो
21 सितंबर 2009 को 6:51 pm बजे
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी......dua kabool ho jaye aapki...khoobsurat kavita...
22 सितंबर 2009 को 8:11 am बजे
बहुत अच्छा लिखती हैं आप ! शुभकामनायें !
22 सितंबर 2009 को 11:48 am बजे
फिरदौस जी,
ईद मुबारक!!!
ईद के चाँद के साथ दुआओं का सिलसिला बहुत अच्छा लगा। आपकी दुआयें कुबूल हों... आमीन।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
22 सितंबर 2009 को 2:47 pm बजे
is sundar khyaal ke liye bahoot bahoot badhaai ... har lafz bemisaal hai ... aapki ed ki bahoot bahoot mubaarakbaad ......
29 सितंबर 2009 को 6:39 pm बजे
bhawpurn rchna
6 मार्च 2010 को 9:39 pm बजे
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
कितने अश्क
मेरी आंखों में
भर आए थे...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
कितनी यादें मेरे तसव्वुर में
उभर आईं थीं...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
कितने ख़्वाब
इन्द्रधनुषी रंगों से
झिलमिला उठे थे...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
मेरी हथेलियों की हिना
ख़ुशी से
चहक उठी थी...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
उसी लम्हा
शब की तन्हाई
सुर्ख़ गुलाबों-सी
महक उठी थी...
ईद का चांद देखकर
कभी दिल ने
तुमसे मिलने की
दुआ मांगी थी...
इस नज़्म को कितनी ही बार पढ़ चुके हैं.......लेकिन दिल नहीं भरता.......एक अजीब सी कशिश है इसमें, जिसे बयान करने के लिए लफ़्ज़ नहीं मिल पा रहे हैं.......क्या कहें.......
18 सितंबर 2010 को 4:26 pm बजे
Ati Sundar
22 सितंबर 2010 को 1:46 am बजे
id mubark.vilamb ke liye kshma prarthana.
santosh pandey.