ऐ चांद ! मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...
ऐ चांद !
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...
अब नहीं उठते हाथ
दुआ के लिए
तुम्हें पाने की ख़ातिर...
दिल की वीरानियों में
दफ़न कर दिया
उन सभी जज़्बात को
जो मचलते थे
तुम्हें पाने के लिए...
तुम्हें बेपनाह चाहने की
अपनी हर ख़्वाहिश को
फ़ना कर डाला...
अब नहीं देखती
सहर के सूरज को
जो तुम्हारा ही अक्स लगता था...
अब नहीं बरसतीं
मेरी आंखें
फुरक़त में तम्हारी
क्यूंकि
दर्द की आग ने
अश्कों के समन्दर को
सहरा बना दिया...
अब कोई मंज़िल है
न कोई राह
और
न ही कोई हसरत रही
जीने की
लेकिन
तुमसे कोई शिकवा-शिकायत भी नहीं...
ऐ चांद !
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...
-फ़िरदौस ख़ान
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...
अब नहीं उठते हाथ
दुआ के लिए
तुम्हें पाने की ख़ातिर...
दिल की वीरानियों में
दफ़न कर दिया
उन सभी जज़्बात को
जो मचलते थे
तुम्हें पाने के लिए...
तुम्हें बेपनाह चाहने की
अपनी हर ख़्वाहिश को
फ़ना कर डाला...
अब नहीं देखती
सहर के सूरज को
जो तुम्हारा ही अक्स लगता था...
अब नहीं बरसतीं
मेरी आंखें
फुरक़त में तम्हारी
क्यूंकि
दर्द की आग ने
अश्कों के समन्दर को
सहरा बना दिया...
अब कोई मंज़िल है
न कोई राह
और
न ही कोई हसरत रही
जीने की
लेकिन
तुमसे कोई शिकवा-शिकायत भी नहीं...
ऐ चांद !
मेरे महबूब से फ़क़्त इतना कहना...
-फ़िरदौस ख़ान
7 नवंबर 2008 को 3:39 pm बजे
एक दुआ आपके लिए...
बिछड़े हुए का ग़म काश चांद साझा कर जाए...
किसी की फ़रियाद सुनकर
कसूरवार को अपनी दूधिया चांदनी में समेट लाए
और बिखेर दे
हर जगह..हर ओर
ओस की नन्ही झिलमिलाती बूंदों की तरह
कि बचना भी चाहे कोई तो बच न पाए
दिल का पोर-पोर गीला कर जाए...
सुमित सिंह
7 नवंबर 2008 को 3:42 pm बजे
एक दुआ आपके लिए...
बिछड़े हुए का ग़म काश चांद साझा कर जाए...
किसी की फ़रियाद सुनकर
कसूरवार को अपनी दूधिया चांदनी में समेट लाए
और बिखेर दे
हर जगह..हर ओर
ओस की नन्ही झिलमिलाती बूंदों की तरह
कि बचना भी चाहे कोई तो बच न पाए
दिल का पोर-पोर गीला कर जाए...
सुमित सिंह
7 नवंबर 2008 को 3:43 pm बजे
अब नहीं बरसतीं
मेरी आंखें
फुरक़त में तम्हारी
क्योंकि
दर्द की आग ने
अश्कों के समन्दर को
सहरा बना दिया...
" very emotional and lil painful to read... touched me deeply"
Regards
7 नवंबर 2008 को 5:59 pm बजे
हमने
दिल की वीरानियों में
दफ़न कर दिया
उन सभी जज़्बात को
जो मचलते थे
तुम्हें पाने के लिए...
बहुत खूब .बढ़िया लगा यह
7 नवंबर 2008 को 6:15 pm बजे
सुंदर नज्म है। पर हमेशा की तरह उदास है।
7 नवंबर 2008 को 9:26 pm बजे
अब नहीं बरसतीं
मेरी आंखें
फुरक़त में तम्हारी
क्योंकि
दर्द की आग ने
अश्कों के समन्दर को
सहरा बना दिया...
waah...bahut sundar.
7 नवंबर 2008 को 11:55 pm बजे
अब नहीं बरसतीं
मेरी आंखें
फुरक़त में तम्हारी
क्योंकि
दर्द की आग ने
अश्कों के समन्दर को
सहरा बना दिया...
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना।
बहुत भाव पूर्ण कविता।
8 नवंबर 2008 को 12:07 am बजे
A chand sun kisi ki
fariyaad ek baar
mil jaye uska chanda,
tera shukriya baar-baar.
8 नवंबर 2008 को 7:07 am बजे
कोई शिकवा भी नहीं कोई शिकायत भी नहीं
और हम भूल गए हों उन्हें, ऐसा भी नहीं
बहुत उम्दा.
8 नवंबर 2008 को 11:48 am बजे
ati sunder
8 नवंबर 2008 को 12:23 pm बजे
तुम्हें बेपनाह चाहने की
अपनी हर ख़्वाहिश को
फ़ना कर डाला...
अब नहीं देखती
सहर के सूरज को
जो तुम्हारा ही अक्स लगता था...
very nice..... wats the comparison of beloved with the dawn...... subah ka suraj aur mehboob ki shakl achcha ahsaas hai
8 नवंबर 2008 को 1:18 pm बजे
bahut khubsoorat..
sidha dil tak utar gaya..
11 नवंबर 2008 को 1:47 am बजे
bahut sundar