कुछ यादें...

नज़्म
कुछ यादें
उन हसीं लम्हों की
अमानत होती हैं
जब ज़मीन पर
चांदनी की चादर बिछ जाती है
फूल अपनी-अपनी भीनी-भीनी महक से
फ़िज़ा को रूमानी कर देते हैं
हर सिम्त मुहब्बत का मौसम
अंगड़ाइयां लेने लगता है
पलकें
सुरूर से बोझल हो जाती हैं
और
दिल चाहता है
ये वक़्त यहीं ठहर जाए
एक पल में
कई सदियां गुज़र जाएं...
-फ़िरदौस ख़ान
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8 Response to "कुछ यादें..."

  1. बेनामी Says:
    9 सितंबर 2008 को 8:40 am बजे

    फूल अपनी-अपनी भीनी-भीनी महक से
    फ़िज़ा को रूमानी कर देते हैं
    हर सिम्त मुहब्बत का मौसम
    अंगराईयां लेने लगता है
    पलकें
    सुरूर से बोझल हो जाती हैं
    और
    दिल चाहता है
    ये वक़्त यहीं ठहर जाए
    एक पल में
    कई सदियां गुज़र जाएं...

    सुब्हान अल्लाह... बहुत प्यारी नज़्म है...

  2. रंजू भाटिया says:
    9 सितंबर 2008 को 10:28 am बजे

    और
    दिल चाहता है
    ये वक़्त यहीं ठहर जाए
    एक पल में

    बहुत सुंदर बात और भाव

  3. Shastri JC Philip says:
    9 सितंबर 2008 को 11:16 am बजे

    "दिल चाहता है
    ये वक़्त यहीं ठहर जाए
    एक पल में
    कई सदियां गुज़र जाएं..."

    वाह्! ऐसे कई मौके आते हैं जिन्दगी में!!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!

  4. पारुल "पुखराज" says:
    9 सितंबर 2008 को 12:02 pm बजे

    ruumaani!!

  5. pallavi trivedi says:
    9 सितंबर 2008 को 1:33 pm बजे

    bahut khoobsurat nazm....

  6. Udan Tashtari says:
    19 मार्च 2010 को 7:55 am बजे

    बहुत सुन्दर!

  7. Randhir Singh Suman says:
    19 मार्च 2010 को 8:41 am बजे

    nice

  8. संगीता स्वरुप ( गीत ) says:
    19 मार्च 2010 को 10:52 am बजे

    खूबसूरत अभिव्यक्ति

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