नाम अपना आइना रख लूंगी मैं...
आप कहते हैं तो फिर जी लूंगी मैं
जब सर तस्लीम खुम कर दिया
ना नहीं, हां बोलूंगी मैं
गर नहीं है आपको जूड़ा पसंद
इन घटाओं को खुला रखूंगी मैं
आप अगर यूं ही मुझे तकते रहे
नाम अपना आइना रख लूंगी मैं
लब हिलने की ज़रूरत ही नहीं रही
आपके चहरे से सब पढ़ लूंगी मैं
मैंने जो चाहा हासिल तो किया
और क्या 'फ़िरदौस' अब चाहूंगी मैं
-फ़िरदौस ख़ान
6 मार्च 2010 को 6:37 pm बजे
चलिये आपने सब कुछ पा तो लिया, कम से कम. आईना वाला शेर सबसे अधिक पसंद आया.
6 मार्च 2010 को 8:47 pm बजे
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी समझूंगी मैं
आप कहते हैं तो फिर जी लूंगी मैं
जब सर तस्लीम खुम कर दिया
ना नहीं, हां बोलूंगी मैं
गर नहीं है आपको जूड़ा पसंद
इन घटाओं को खुला रखूंगी मैं
आप अगर यूं ही मुझे तकते रहे
नाम अपना आइना रख लूंगी मैं
लब हिलने की ज़रूरत ही नहीं रही
आपके चहरे से सब पढ़ लूंगी मैं.......
एक-एक शेअर लाजवाब.......फ़िरदौस साहिबा, बस आप यूं ही लिखती रहें.......हमें आपके कलाम का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.......
7 मार्च 2010 को 12:29 am बजे
बहुत अच्छा .. सब लाजबाब !!
8 मार्च 2010 को 12:09 pm बजे
हर शेर लाजवाब है ... ताज़ा खुश्बू लिए .... बहुत कमाल की ग़ज़ल .. किसी एक शेर का ज़िक्र आसान नही है ...
9 मार्च 2010 को 12:02 am बजे
aap ka kalam mein waqayee jidat-o-nudrat aur husn-o-shabab hai. aap ka blog fan paron se labrez hai.ALLAH aap ke qalam ko aur tawanai de!..........vkbudki@rediffmail.com
4 अक्टूबर 2012 को 4:06 pm बजे
bahut hi umda shayri ha. Bahut Bahut pasand aai.