मैं अकसर सोचती हूं
तुम्हारे लिए
एक गीत लिखूं
आसमान के काग़ज़ पर
चांदनी की रौशनाई से
मगर
मेरे जज़्बात के मुक़ाबिल
हर शय छोटी पड़ जाती है
इस कायनात की... -फ़िरदौस ख़ान
आते ही आप तो छा गई. कुछ ही दिन पहले आपका संदेश मिला आपने एक ब्लॉग बनाया है. और इतने कम दिनों में इतनी सारी रचनाएं लिख मारी. आपकी सक्रियता यहाँ बनी रहे, मेरी शुभकामनाएं
शायरा, लेखिका और पत्रकार. लोग लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी कहते हैं.
उर्दू, हिन्दी, इंग्लिश और पंजाबी में लेखन. दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दीं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का सम्पादन किया. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण. ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लेखन. फ़हम अल क़ुरआन लिखा. सूफ़ीवाद पर 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए अनेक पुरस्कारों ने सम्मानित. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत की. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम ली. फ़िलहाल 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक हैं.
अपने बारे में एक शेअर पेश है- नफ़रत, जलन, अदावत दिल में नहीं है मेरे
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फ़िरदौस ख़ान
इस बलॊग में ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं
8 अगस्त 2008 को 3:17 pm बजे
bahut badhiyaa...pyaari nazm
8 अगस्त 2008 को 4:16 pm बजे
आते ही आप तो छा गई. कुछ ही दिन पहले आपका संदेश मिला आपने एक ब्लॉग बनाया है. और इतने कम दिनों में इतनी सारी रचनाएं लिख मारी.
आपकी सक्रियता यहाँ बनी रहे, मेरी शुभकामनाएं
8 अगस्त 2008 को 5:17 pm बजे
क्या बात है. बहुत ख़ूब.
8 अगस्त 2008 को 8:53 pm बजे
sundar..prem ko kitne hi shabson mein vyakta kiya jaye kam hi padega
8 अगस्त 2008 को 9:52 pm बजे
बहुत बढिया.
10 अगस्त 2008 को 3:45 pm बजे
वाह फिरदौस जी बचपन याद दिला दिया क्योंकि हम चांदनी रोशनाई नाम से काली स्याही मिलती थी 25 पैसे की पुडिया वही यूज किया करते थे बहुत खूब