मेरी रूह महक रही है, तुम्हारी मुहब्बत से...

मेरे महबूब !
मुहब्बत के शहर की
ज़मीं का वो टुकड़ा
आज भी यादों की ख़ुशबू से महक रहा है
जहां
मैंने सुर्ख़ गुलाबों की
महकती पंखुड़ियों को
तुम्हारे क़दमों में बिछाया था...
तुमने कहा था-
यह फूल क़दमों में बिछाने के लिए नहीं
तुम्हारे बालों में सजाने के लिए हैं... 
फिर तुमने
मेरे खुले बालों में 
सुर्ख़ गुलाब लगाते हुए कहा था- 
आई लव यू ...
तब से मेरे बाल ही नहीं
मेरी रूह भी महक रही है
तुम्हारी मुहब्बत से...
-फ़िरदौस ख़ान
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एक झूठा लफ़्ज़ मुहब्बत का...


सरहद पार से न्यूज़ एंकर सईद साहब ने हमें एक नज़्म भेजी है...
नज़्म का एक-एक लफ़्ज़ रूह की गहराइयों में उतर जाने वाला है...जबसे हमने यह नज़्म पढ़ी है...तब से हम ख़ुद को इसके असर से जुदा नहीं कर पाए हैं...इस नज़्म में ऐसा क्या है, जिसने हमें इस क़द्र बांध लिया है...उसे लफ़्ज़ों में क़ैद करके बयां करने में ख़ुद को नाक़ाबिल महसूस कर रहे हैं...मुलाहिज़ा फरमाएं...

एक झूठा लफ़्ज़ मुहब्बत का
इस दिल में सलामत है अब तक
वो शोख़ी-ए-लब वो हर्फ़-ए-वफ़ा
वो नक़्श-ए-क़दम वो अक्स-ए-हिना
सौ बार जिसे चूमा हमने
सौ बार परस्तिश की जिसकी
इस दिल में सलामत है अब तक
वो गर्द-ए-अलम वो दीदा-ए-नम
हम जिसमें छुपाकर रखते हैं
तस्वीर बिखरती यादों की
ज़ंजीर पिघलते वादों की
पूंजी नाकाम इरादों की
ऐ तेज़ हवा नाराज़ न हो
इस दिल में सलामत है अब तक
सामान बिछड़ते साथ का
कुछ टुकड़े गरम दोपहरों के
कुछ रेज़े नरम सवालों के
कुछ ढेर अनमोल ख़्यालों के
एक सच्चा रूप हक़ीक़त का
एक झूठा लफ़्ज़ मुहब्बत का...
(हमारी डायरी से)
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शरारे बनके बरसते हैं अब इंतज़ार के फूल...फ़िरदौस ख़ान


सिसकती वादियां कहती हैं देवदारों से
शरारे बनके बरसते हैं अब इंतज़ार के फूल... (नामालूम)

सच...इंतज़ार की भी अपनी ही ख़ुशी और अपना ही ग़म होता है...यह ख़ुशी और ग़म... इस बात पर निर्भर करता है कि इंतज़ार किसका किया जा रहा है... ? फ़िलहाल एक गुज़ारिश पर अपनी ग़ज़ल पेश कर रहे हैं... अनुराग मुस्कान साहब की एक तस्वीर के साथ, जो कई बरस पहले उन्होंने हमारी एक नज़्म के लिए भेजी थी...
 
ग़ज़ल
लुत्फ़ जब भी किसी मंज़र का उठाया हमने
दिल को बेचैन-सा वीरान सा पाया हमने

आज फिर याद किया धूप में जलकर उसको
आज फिर छत पे वही ख़्वाब बुलाया हमने

हादसा आज अचानक वही फिर याद आया
कितनी मुश्किल से जिसे दिल से भुलाया हमने

नर्म झोंके की तरह दिल को जो छूकर गुज़रा
ग़म उसी शख़्स का ताउम्र उठाया हमने

जिसको ठुकरा दिया 'फ़िरदौस' जहां ने, उसको
अपने गीतों में सदा ख़ूब सजाया हमने
-फ़िरदौस ख़ान

तस्वीर : अनुराग मुस्कान  
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इश्क़ की नज़्म...


मैं
उम्र के काग़ज़ पर
इश्क़ की नज़्म लिखती रही
और
वक़्त गुज़रता गया
मौसम-दर-मौसम
ज़िन्दगी की तरह...
-फ़िरदौस ख़ान


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फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में...फ़िरदौस ख़ान



अर्चना चावजी की मधुर आवाज़ में सुनिए...

ग़ज़ल
चांदनी रात में कुछ भीगे ख़्यालों की तरह
मैंने चाहा है तुम्हें दिन के उजालों की तरह

साथ तेरे जो गुज़ारे थे कभी कुछ लम्हें
मेरी यादों में चमकते हैं मशालों की तरह

इक तेरा साथ क्या छूटा हयातभर के लिए
मैं भटकती रही बेचैन ग़ज़ालों की तरह

फूल तुमने जो कभी मुझको दिए थे ख़त में
वो किताबों में सुलगते हैं सवालों की तरह

तेरे आने की ख़बर लाई हवा जब भी कभी
धूप छाई मेरे आंगन में दुशालों की तरह

कोई सहरा भी नहीं, कोई समंदर भी नहीं
अश्क आंखों में हैं वीरान शिवालों की तरह

पलटे औराक़ कभी हमने गुज़श्ता पल के
दूर होते गए ख़्वाबों से मिसालों की तरह
-फ़िरदौस ख़ान
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विश्व पुस्तक मेले में हमारी किताब...


विश्व पुस्तक मेले में प्रभात प्रकाशन के स्टॉल पर हमारी किताब
यूं तो पुस्तक प्रेमियों को हमेशा ही विश्व पुस्तक मेले का बेसब्री से इंतज़ार रहता है...लेकिन इस बार बात अलग थी...क्योंकि हमारी किताब भी विश्व पुस्तक मेले में प्रदर्शित होने वाली थी...वो दिन भी आया जब राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे पुस्तक मेले में हमारी किताब 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' भी छाई रही... इसे ज्ञान गंगा (प्रभात प्रकाशन समूह) ने शाया किया है. अपनी किताब को यहां देखकर बेहद ख़ुशी हुई...जैसा नाम से ही ज़ाहिर होता है...हमारी किताब गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ में 55 संतों और फ़क़ीरों  की वाणी एवं जीवन-दर्शन को प्रस्‍तुत किया गया है...

नेशलन बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित 19वां विश्व पुस्तक मेला राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में 30 जनवरी को शुरू हुआ. सात फ़रवरी तक चले इस पुस्तक मेले का उदघाटन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने किया. इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि विश्व पुस्तक मेला एक संवृद्ध विरासत है. इस पुस्तक मेले का मक़सद हज़ारों किताबों  को ज़्यादा से ज़्यादा  लोगों तक पहुंचाना है. अपने एक संदेश में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल  ने कहा कि किताबें मानव ज्ञान का भंडार हैं और यह महत्वपूर्ण है कि देश के पाठकों के लिए सभी क्षेत्र से जुड़ी पुस्तकें उपलब्ध हों.
देश-विदेश के तक़रीबन 1,200 प्रकाशकों ने पुस्तक मेले में अपनी किताबों की प्रदर्शनी लगाई. तक़रीबन  4,200 वर्गमीटर में फैले इस मेला क्षेत्र में 2,400 बुक स्टॉल लगाए गए.  इस साल पिछले साल से ज़्यादा स्टॉल लगे.  हालत यह रही कि हॉल के बाहर भी काफ़ी जगह प्रकाशकों को दी गई . मेले में तक़रीबन 90  फ़ीसदी अंग्रेजी की किताबें थीं.  अमेरिका और ब्रिटेन के बाद हिन्दुस्तान अंग्रेजी किताबों के प्रकाशन का तीसरा सबसे बड़ा देश है. हिन्दुस्तान दुनिया के बड़े पुस्तक बाजारों में एक है और इसी वजह से दुनियाभर के प्रकाशकों ने हिन्दुस्तान का रुख़ किया है. साल 2006 के फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले में दूसरी बार अथिति देश होना, साल 2009 के लंदन पुस्तक मेले का ‘मार्केट फोकस’ होना और 2009 के मास्को पुस्तक मेले में अथिति देश होना पुस्तक बाज़ार में हिन्दुस्तान के महत्व को रेखांकित करता है. अन्य भाषाओं का ज़िक्र करें तो यहां 18 से ज़्यादा भाषाओं में किताबें प्रकाशित होती हैं.  यहां विभिन्न भाषाओं के 12 हज़ार से ज़्यादा प्रकाशक हैं, जो हर साल तक़रीबन एक लाख किताबें प्रकाशित करते हैं. यहां सबसे ज़्यादा किताबें क्षेत्रीय भाषाओं में छपती हैं. इनमें हिंदी पहले स्थान पर है.

इस बार का मेला राष्ट्रकुल खेल को समर्पित किया गया था. इस पुस्तक मेले की विषय वस्तु ‘रीडिंग अवर कॉमनवेल्थ’ यानी ‘हमारे साझा वैभव का अध्ययन’ थी. राष्ट्रकुल खेल के नाम एक पूरा पवेलियन था, जिसमें खेल से जुड़ी दुनियाभर की किताबें थीं.  इसके लिए कैटलॉग भी बनाया गया था, ताकि बाद में भी उन किताबों के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की जा सके. देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू पर अलग से किताबें प्रदर्शित की गईं . इनमें नेहरू पर लिखी दुनियाभर की किताबों को शामिल किया गया. मेले में एक बाल पवेलियन भी था, जिसमें अनेक एनजीओ द्वारा बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने वाली गतिविधियां शामिल थीं.

ग़ौरतलब है कि मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय द्वारा बनाए गए राष्ट्रीय पुस्तक ट्रस्ट द्वारा हर दूसरे साल विश्व पुस्तक मेले का आयोजन किया जाता है. यह एक स्वायत्त संगठन है और इसका काम किताबों को बढ़ावा देना है. इसके अलावाब भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन सह-संयोजक के तौर पर इस मेले में शामिल रहता है. यह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के तत्वावधान में काम करता है. यह देश के व्यापार और उद्योगों के विकास के लिए काम करता है. विश्व  पुस्तक मेले के आयोजन का मक़सद जनमानस में किताबों के लिए दिलचस्पी  पैदा करना है.

नेशलन बुक ट्रस्ट द्वारा  द्विवार्षिक विश्व पुस्तक मेला पहली बार 1972 में दिल्ली के विंडसर पैलेस इलाक़े में लगा था. तक़रीबन 7780 वर्ग मीटर क्षेत्र में आयोजित इस मेले में 200 प्रकाशकों ने हिस्सा लिया था. अगली बार यानी 1976 में लगे दूसरे विश्व पुस्तक मेले में प्रकाशकों की तादाद बढ़कर 266 हो गई थी.  इस साल 42,839 वर्ग मीटर क्षेत्र में आयोजित 19वें विश्व पुस्तक मेले में 1234 प्रकाशकों ने शिरकत की. 2006 में आयोजित पुस्तक मेले में 10 लाख से ज़्यादा लोग आए थे, जबकि इस साल इनकी तादाद तक़रीबन 20 लाख तक पहुंच गई थी.

दुनियाभर के प्रकाशक सैकड़ों नई किताबें लेकर आए. प्रभात प्रकाशन के प्रमुख प्रभात कुमार ने बताया कि वे पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृषण आडवाणी की मेरा देश मेरा जीवन और फ़िरदौस ख़ान की किताब गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत के सहित कई अच्छी किताबें लेकर आए, जिन्हें बहुत सराहा गया. राजकमल प्रकाशन की किताबें भी मेले में छाई रहीं. किताब घर प्रकाशन के प्रमुख सत्यव्रत का कहना है कि वे 35 नईं किताबें लेकर आए. इनमें साहित्यिक पुस्तकों के अलावा ज्ञान-विज्ञान से संबंधित किताबें भी शामिल थीं. ओशियन बुक्स के निदेशक डॉ. पीयूष कुमार भी हिंदी और अंग्रेजी की सौ से ज़्यादा नई किताबें लाए., जिनमें हिंदी की किताबें ज़्यादा थीं. रॉली बुक्स और डायमंड बुक्स ने भी कई नई किताबें प्रदर्शित कीं.

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार कहते हैं- लेखिका चिन्तक है, सुधारवादी है, परिश्रमी है, निर्भय होकर सच्चाई के नेक मार्ग पर चलने की हिम्मत रखती है. विभिन्न समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में नानाविध विषयों पर उसके लेख छपते रहते हैं. ज़िंदगी में यह पुस्तक लेखिका को एवं समाज को ठीक मिशन के साथ मंज़िल की ओर बढ़ने का अवसर प्रदान करेगी. सफलताओं की शुभकामनाओं के साथ मैं ईश्वर से प्रार्थना करूंगा उस पर उसकी कृपा सदैव बरसती रहे. मुझे विश्वास है कि प्रकाश स्तंभ जैसी यह पुस्तक ‘गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत’ सभी देशवासियों को इस सच्ची राह पर चलने की हिम्मत प्रदान करेगी.




किताब का नाम : गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत 
लेखिका : फ़िरदौस ख़ान
पेज : 172
क़ीमत : 200 रुपये


प्रकाशक
ज्ञान गंगा (प्रभात प्रकाशन समूह)
205 -सी, चावड़ी बाज़ार
दिल्ली-110006


प्रभात प्रकाशन 
4/19, आसफ़  अली रोड, दरियागंज
नई दिल्ली-110002
फ़ोन : 011 23289555

Ganga jamuni sanskriti ke agradoot written by Firdaus Khan





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सरफ़रोशी के हम गीत गाते रहे...

मुस्कराते रहे, ग़म उठाते रहे
सरफ़रोशी के हम गीत गाते रहे

रोज़ बसते नहीं हसरतों के नगर
ख़्वाब आंखों में फिर भी सजाते रहे

रेगज़ारों में कटती रही ज़िन्दगी
ख़ार चुभते रहे, गुनगुनाते रहे

ज़िन्दगीभर उसी अजनबी के लिए
हम भी रस्मे-दहर को निभाते रहे
-फ़िरदौस ख़ान
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इस प्यार ने क्या कुछ बदला है...

सच!
आज पहली बार
सुबह सूरज निकला तो
कितना भला लगा
सूरज की सुनहरी किरनों ने
चूम लिया बदन मेरा
तुम थे कोसों दूर
पर यूं लगा
जैसे
यह प्यार भरा पैगाम
तुमने ही भेजा है
इस प्यार ने क्या कुछ बदला है
कि अब तो
हर शय निखरी-निखरी लगती है...
-फ़िरदौस ख़ान
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ब्लॉगवाणी और ब्लॉगर साथियों, हम आपके शुक्रगुज़ार हैं...

पिछले दिनों ब्लॉग जगत में जो कुछ हुआ... और उस वक़्त जिन ब्लॉगर साथियों ने हमें अपना समर्थन दिया... उसके लिए हम सभी ब्लॉगर साथियों के तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं...
साथ ही हम ब्लॉगवाणी का भी आभार व्यक्त करते हैं...


हमारे लिए सभी ब्लॉगर आदरणीय और सम्माननीय हैं... इसलिए समझ नहीं आ रहा था कि किसका नाम पहले लिखें... जिनका नाम बाद में आता, शायद हम उनके साथ नाइंसाफ़ी करते, बस इसी को मद्देनज़र रखते हुए हमने किसी भी साथी का नाम नहीं लिखा है...


कुछ साथियों ने सही कहा है कि 'कुछ' (इस्लाम के ठेकेदार, नफ़रत को बढ़ावा देने वाले) ब्लॉगों को ब्लॉगवाणी से हटाने से समस्या का समाधान नहीं होगा...
हर कोई अपनी 'मानसिकता' और अपने 'संस्कारों' का ही प्रदर्शन करता है...
'दिन' को किसी के 'रात' कह देने से उजाला कम तो नहीं हो जाता...
फ़िरदौसी ने सच ही कहा है-
सच पर चलने वालों का हर क़दम शैतान के सीने पर होता है...


जिन लोगों का मक़सद सिर्फ़ नफ़रत की आग फैलाना होता है... शायद वो नहीं जानते कि एक न एक दिन ये आग उनका घर भी फूंक सकती है... देश में हुए कुछ दंगे इसी बात का सबूत हैं...

हम 'वसुधैव कुटुम्बकम्' में यक़ीन रखते हैं... इसलिए हमने हमेशा इंसानियत की बात की है और हमेशा करते रहेंगे...

क्योंकि-
मुझे तालीम दी है मेरी फ़ितरत ने ये बचपन से
कोई रोये तो आंसू पोंछ देना अपने दामन से...

जय हिन्द

वन्दे मातरम्
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रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे...




 ग़ज़ल
रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख़्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे

ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

ज़िन्दगी एक जज़ीरा है तमन्नाओं का
धूप उल्फ़त की यही बात बताती है मुझे

हर तरफ़ मेरे मसाइल के शरार बरपा हैं
जुस्तजू अब्र की हर लम्हा बुलाती है मुझे

मैं संवरने की तमन्ना में बिखरती ही गई
आंधियां बनके हवा ऐसे सताती है मुझे

जब से क़िस्मत का मेरी रूठ गया है सूरज
तीरगी वक़्त की हर रोज़ डराती है मुझे

आलमे-हिज्र में 'फ़िरदौस' खो गई होती
चांदनी रोज़ रफ़ाक़त की बचाती है मुझे
-फ़िरदौस ख़ान
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