लाहासिल ख़्वाहिशात...


रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी है... लड़की अब भी जाग रही है... नींद उसकी आंखों से कोसो दूर है... माहौल में चम्पा के फूलों की महक है... हवा के झोंको से हिलती चमेली की टहनियां अपनी मौजूदगी का अहसास करा रही हैं... आसमान में आधा चांद चमक रहा है... या यूं कहें कि अधूरा चांद, जो रफ़्ता-रफ़्ता एक सिम्त से दूसरी सिम्त सरक रहा है... वो सोचती है, चांद तो कुछ रोज़ बाद मुकम्मल हो जाएगा, लेकिन ज़िन्दगी का क्या, उसकी हसरतों का क्या, जो आज तक नामुकम्मल हैं... और उसकी लाहासिल ख़्वाहिशात...
(हमारी एक कहानी से)


तस्वीर : गूगल से साभार


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