सोने की चेन...


-फ़िरदौस ख़ान
लड़की बहुत बेचैन थी... वो लड़के से बात करना चाहती थी... लड़का हज़ारों मील दूर परदेस में रहता था... लड़की की मजबूरी ये थी कि वो न तो लड़के से बात कर सकती थी और न बात किए बिना रह सकती थी... वो चाहती थी कि बस एक बार वो उस लड़के की आवाज़ सुन ले, जो उसकी ज़िन्दगी था... वो लड़के को ख़त भी नहीं लिख सकती थी... उसके पास एक ही रास्ता था कि वो लड़के को फ़ोन करे... लड़की के पास मोबाइल नहीं था और घर से बाहर जाकर पीसीओ पर बात करना मुनासिब नहीं लगता था... वो किसी और के मोबाइल से भी बात नहीं कर सकती थी... इसलिए लड़की ने मोबाइल फ़ोन ख़रीदने का फ़ैसला किया... अब मसला ये था कि उसके पास मोबाइल ख़रीदने के लिए पैसे नहीं थे... कई दिन तक वो इसी कशमकश में रही कि क्या करे... हालांकि लड़के ने कई बार उसे कहलवा भेजा था कि वो मोबाइल भिजवा देता है, लेकिन लड़की ने इंकार कर दिया... क्योंकि अना नाम की भी कोई शय हुआ करती है... इस बात को लेकर लड़का उससे नाराज़ भी हुआ, लेकिन लड़की की ख़ुद्दारी ने उसे झुकने नहीं दिया...
लड़की के पास सोने की एक चेन थी, जो बरसों पहले उसने अपने पैसों से ख़रीदी थी... और उसे बहुत प्यारी भी थी... ये चेन ही थी, जो उसके मसले का हल थी... उसे लड़के की आवाज़ सुनवा सकती थी... चुनांचे, उसने वो चेन अपनी एक सहेली के ज़रिये बेच दी और उस पैसों से एक मोबाइल ख़रीद लिया... और एक सिम का इंतज़ाम किया... अब वो बहुत ख़ुश थी, लड़के से बात कर सकती थी... वो बेसब्री से रात होने का इंतज़ार करने लगी... वो जानती थी कि दिन में लड़का काम में मसरूफ़ रहता है... वो लड़के से उस वक़्त बात करना चाहती थी, जब लड़का फ़ुर्सत में हो... एक-एक लम्हा मुश्किल से गुज़रा... फिर रात हुई और लड़की ने छत पर जाकर लड़के को कॊल की... लड़के ने उससे बात की और मोबाइल के बारे में पूछा... लड़की ने सच बता दिया... इस पर लड़के को ग़ुस्सा आ गया... शायद लड़के को लगा था कि लड़की ने उसे पराया समझा... लेकिन ऐसा क़तई नहीं था...
अब लड़की बहुत उदास थी... उसकी आंखों में आंसू थे...जिस लड़के की आवाज़ सुनने के लिए उसने अपनी प्यारी चेन की क़ुर्बानी दी, वही उससे नाराज़ हो गया था...
वो सोच रही थी- काश ! लड़का उसके जज़्बात समझ सकता... उसकी भीगी पलकें और पुरनम आंखें देख पाता...
लड़के ने उसे बहुत डांटा... उसकी ग़ैरत को ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि लड़की ने उसके लिए अपनी प्यारी सोने की चेन बेच दी...
आख़िर में लड़की ने लड़के से मुआफ़ी मांग ली... और नेकदिल लड़के ने उसे मुआफ़ कर दिया...

तस्वीर : गूगल से साभार
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हरे कांच की चूड़ियां...


-फ़िरदौस ख़ान
आज फिर गली मे चूड़ी वाला आया...  वह ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ लगा रहा था- चूड़ियां ले लो, चूड़ियां ले लो, रंग-बिरंगी चूड़ियां ले लो... जब भी चूड़ी वाले की आवाज़ आती...  लड़की के क़दम दरवाज़े की जानिब बढ़ जाते... गली-मुहल्ले की औरतें चूड़ी वाले को घेर लेतीं... कोई लाल चूड़ियां ख़रीदती, कोई नीली-पीली चूड़ियां पहनती...  लड़की को भी हर लड़की की तरह चूड़ियां बहुत पसंद थीं, लेकिन उसकी कलाइयां सूनी रहतीं... गली-मुहल्ले की औरतें टोकतीं कि कलाइयां ऐसे सूनी नहीं रखा करते अपशगुन होता है... लेकिन लड़की ने भी ज़िद कर रखी थी कि जब वो चूड़ियां लाकर अपने हाथ से पहनाएगा, तभी उसकी कलाइयां चूड़ियों से सजेंगीं... वरना उम्र भर यूं ही सूनी रहेंगी...
लड़का हज़ारों मील दूर परदेस में रहता था... वो नहीं जानती थी कि वो कब आएगा... बस उसे इतना याद है कि एक बार लड़के ने उससे पूछा था कि परदेस से उसके लिए क्या लाए... और लड़की ने कहा था कि उसे हरे कांच की चूड़ियां चाहिए... तब लड़के ने कहा था कि वो अपने हाथों से उसे चूड़ियां पहनाएगा... तब से वो उस लड़के का इंतज़ार कर रही है...

पेंटिंग : गूगल से साभार

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प्रिय पाठकों !


प्रिय पाठकों !
बहुत लोग हमें इनबॊक्स मैसेज करके कहते हैं-
आपकी दर्द से लबरेज़ तहरीर दिल में उतर जाती है...
आपकी तहरीर ने हमें रुला दिया...
आपकी तहरीर रूह को ज़ख़्मी कर देती है... और भी ऐसा ही बहुत कुछ...

प्रिय पाठकों,
हम आप सबसे माज़रत चाहते हैं... क्या करें, हमारी क़लम ज़ेहन के अख़्तियार में नहीं... हम कुछ सोचकर नहीं लिखते... जब लिखने बैठ जाते हैं, तो क़लम ख़ुद-ब-ख़ुद लफ़्ज़ चुन लेती है... जो दिल में होता है, वो अल्फ़ाज़ बनकर तहरीर की शक्ल अख़्तियार कर लिया करता है... वो चाहे नज़्म हो, ग़ज़ल हो, गीत हो या फिर कोई अफ़साना...
ज़िन्दगी हमेशा सतरंगी और ख़ुशनुमा नहीं हुआ करती... ज़िन्दगी में ख़ुशी के उजले दिन होते हैं, तो दुखों भरी स्याह रातें भी हुआ करती हैं... आंखों में इंद्रधनुषी ख़्वाब होते हैं, तो ख़्वाब टूटने पर आंखों से आंसुओं का दरिया भी बहता है...
फ़र्क़ बस इतना है कि क़ातिबे-तक़दीर ने किसी की क़िस्मत में ख़ुशियों भरी ज़िन्दगी लिख दी होती है, तो किसी के मुक़द्दर में सिर्फ़ अज़ाब लिख छोड़ा होता है...

इसलिए एक बार फिर आप सबसे माज़रत चाहते हैं...
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आख़िरी वर्क़...


मैं
लिखना चाहती हूं
अपनी मौत की ख़बर
और
ज़िन्दगी की किताब का
आख़िरी वर्क़...
-फ़िरदौस ख़ान

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संगोष्ठी में बेगम अख़्तर को याद किया


नई दिल्ली. बेगम अख़्तर जितनी बड़ी गायिका थीं, उतनी बड़ी ही इंसान थीं. यह बात लेखक और फ़िल्मकार शरद दत्त ने बेगम अख़्तर को समर्पित सन्निधि की संगोष्ठी में अध्यक्षीय भाषण के दौरान कही. गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा और विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान की ओर से रविवार को सन्निधि सभागार में आयोजित संगोष्ठी में दत्त ने बेगम अख़्तर के साथ व्यतीत क्षणों का विस्तार से ज़िक्र करते हुए कहा कि वे अपने मिज़ाज से जीती थीं और कार्यक्रमों में शिरकत करने से इंकार तब भी नहीं करती थीं, जब वे बीमार रहती थीं. वे बड़ी कलाकार अपने प्रयासों के कारण बनीं, लेकिन उनमें अहंकार कभी नहीं रहा.

काका कालेलकर और विष्णु प्रभाकर की स्मृति में हर माह आयोजित होने वाली इस बार की संगोष्ठी ग़ज़ल और डायरी लेखन पर केंद्रित थी. मुख्य अतिथि दीक्षित दनकौरी के सानिध्य में संगोष्ठी में नए रचनाकारों ने अपनी ताज़ातरीन ग़ज़लें पेश कीं. इनमें विशिष्ट अतिथि और वरिष्ठ पत्रकार फ़िरदौस ख़ान सहित प्रदीप तरकश, विकास राज, राजेंद्र कलकल, अरुण शर्मा अनंत, कालीशंकर सौम्य, मनीष मधुकर, उर्मिला माधव, सीमा अग्रवाल, शालिनी रस्तोगी, जीतेंद्र प्रीतम, कामदेव शर्मा, अनिल मीत और अस्तित्व अंकुर शामिल थे. इनकी ग़ज़लों में मौजूदा समय की विसंगतियों और विडंबनाओं का उल्लेख था.

इस मौक़े पर शायरी के क्षेत्र में चर्चित दीक्षित दनकौरी ने अपनी चुनिंदा ग़ज़लों को पेश करने से पहले नये रचनाकारों को हिदायत दी कि वे मंचीय कवियों की नक़ल न करें और न ही सस्ती लोकप्रियता की ओर भागें. उन्होंने नये रचनाकारों से आग्रह किया कि वे अपने स्तर से रचना-कर्म की ख़ूब गहराई डूबें. उन्होंने कहा कि लेखन का कार्य दिखने में भले आसान-सा लगे पर यह वास्तव में कठिन काम है.

समारोह में विशिष्ट अतिथि व स्टार न्यूज़ एजेंसी की समूह सम्पादक फ़िरदौस ख़ान ने डायरी लेखन का ज़िक्र करते हुए कहा कि इन दिनों डायरी लेखन ख़ूब हो रहा है. डायरी, आत्मकथा का ही एक रूप है. फ़र्क़ बस ये है कि आत्मकथा में पूरी ज़िन्दगी का ज़िक्र होता है और ज़िन्दगी के ख़ास वाक़ियात ही इसमें शामिल किए जाते हैं, जबकि डायरी में रोज़मर्रा की उन सभी बातों को शामिल किया जाता है, जिससे लेखक मुतासिर होता है. डायरी में अपनी ज़ाती बातें होती हैं, समाज और देश-दुनिया से जुड़े क़िस्से हुआ करते है. डायरी लेखन जज़्बात से सराबोर होता है, क्योंकि इसे अमूमन रोज़ ही लिखा जाता है. इसलिए उससे जुड़ी तमाम बातें ज़ेहन में ताज़ा रहती हैं. डायरी लिखना अपने आप में ही बहुत ख़ूबसूरत अहसास है. डायरी एक बेहद क़रीबी दोस्त की तरह है, क्योंकि इंसान जो बातें किसी और से नहीं कह पाता, उसे डायरी में लिख लेता है. हमारे मुल्क में भी डायरी लेखन एक जानी-पहचानी विधा बन चुकी है. इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए साहित्य जगत ने भी इसे क़ुबूल कर लिया है. बलॊग ने आज इसे घर-घर पहुंचा दिया है. उन्होंने कहा कि डायरी का ज़िक्र तेरह साल की एनी फ्रेंक के बिना अधूरा है. नीदरलैंड पर नाज़ी क़ब्ज़े के दौरान दो साल उसके परिवार ने छिपकर ज़िन्दगी गुज़ारी. बाद में नाज़ियों ने उन्हें पकड़ लिया और शिविर में भेज दिया, जहां उसकी मां की मौत हो गई. बाद में टायफ़ाइड की वजह से ऐनी और उसकी बहन ने भी दम तोड़ दिया. इस दौरान एनी ने अपनी ज़िन्दगी के अनुभवों को डायरी में लिखा था. जब रूसियों ने उस इलाक़े को आज़ाद करवाया, तब एनी की डायरी मिली. परिवार के ऑटो फ्रैंक ने ’द डायरी ऑफ़ ए यंग गर्ल’ नाम से इसे शाया कराया. दुनियाभर की अनेक भाषाओं इसका में अनुवाद हो चुका है. और ये दुनिया की सबसे ज़्यादा लोकप्रिय डायरी में शुमार की जाती है.


विशिष्ट अतिथि डॊ. सुनीता ने डायरी लेखन पर कहा कि साहित्य में बाक़ी विधाओं की तरह डायरी लेखन को भले कोई ख़ास महत्व नहीं मिला, लेकिन इसके महत्व को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए, क्योंकि मलाला और मुख़्तारन बाई जैसी महिलाओं की संघर्षशील जिंदगी की कठिनाइयों की सच्चाई उनकी डायरियों के ज़रिये ही दुनिया जान सकी. उन्होंने कहा कि डायरी लेखन ही एक ऐसा लेखन है, जिसमें लिखने वालों को ख़ुद से साक्षात्कार करना पड़ता है और यह कोई ज़रूरी नहीं कि डायरी लेखन केवल कोई बड़े लेखक तक ही सीमित हैं. डायरी से हर उस ख़ास और आम आदमी का सरोकार रहता रहा है, जिसमें अभिव्यक्ति की आकांक्षा है. डायरी लेखन पर सुरेश शर्मा ने भी अपने विचार रखे. उन्होंने कहा कि डायरी लेखन में ईमानदारी बरतनी चाहिए, जो बहुत ही कम देखने को मिलती है.


गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा की मंत्री कुसुम शाह के सानिध्य में आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत और किरण आर्या ने किया, जबकि स्वागत भाषण करते हुए विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान के मंत्री अतुल प्रभाकर ने आयोजन के मक़सद को उजागर किया और भावी कार्यक्रमों की जानकारी दी. संगोष्ठी में गणमान्य लोगों ने शिरकत की
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क्यों दर्द की इंतेहा नहीं होती...


फ़िरदौस ख़ान
बात बहुत पुरानी है... शायद ग्यारह-बारह साल पुरानी... एक स्टोरी के सिलसिले में हमारी मुलाक़ात एक साधु से हुई... शहर से दूर वीराने में सड़क के किनारे वह धूनी रमाये बैठा रहता था... उसने हमें बताया कि बहुत साल पहले इसी जगह एक झोपड़ी में वह अपनी बीवी और एक बच्ची के साथ रहता था... उसका ख़ुशहाल परिवार था... एक दिन उसकी बीवी की मौत हो गई... बिन मां की बेटी को उसने मां-बाप दोनों का प्यार दिया... बेटी ही उसकी कुल कायनात थी... वह बड़ी हुई... वह हर जगह चहकती फिरती थी... उसे देखकर ही वह जी रहा था... एक आवारा लड़का अकसर उसे परेशान करता था... इस बात को लेकर साधु की उससे कई बार कहासुनी भी हुई... एक दिन उसकी बेटी ग़ायब हो गई... उसने बेटी को बहुत तलाशा, लेकिन वह नहीं मिली... वह पुलिस के पास गया... पुलिस ने उसे भला-बुरा कहकर भगा दिया... और उसकी बेटी के बारे में अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया... वह ख़ुद ही बेटी को तलाशता रहा... काफ़ी दिनों बाद झाड़ियों में उसकी बेटी की लाश मिली... बेटी की लाश देखकर वह टूट गया... उसने फिर पुलिस से गुहार लगाई कि उसकी बेटी को इंसाफ़ दिलाए, लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया...
फिर उसने संसार से नाता तोड़ लिया और देवी की साधना में लग गया... उसने कहा कि वह लड़का आज भी अकसर उसके सामने से मुस्कराता हुआ गुज़रता है... और उस वक़्त उसके दिल पर जो बीतती है, उसे बताया नहीं जा सकता...
कितना सच कहा था उस साधु ने... आज बरसों बाद उस तकलीफ़ को महसूस किया, तो उस दर्द का अहसास हुआ...  जब ज़िन्दगी अज़ाब करने वाला नज़रों के सामने रहे, तो उसे बर्दाश्त करना वाक़ई बहुत तकलीफ़देह होता है... क्यों दर्द की इंतेहा नहीं होती...?

तस्वीर : गूगल से साभार
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नज़्म...


वो
मेरी रूह तक को
बरहना करने पर
आमादा है
जिसे
ये हक़ था
मेरी हिफ़ाज़त करता
मेरे सर का
आंचल बनता...
-फ़िरदौस ख़ान
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... और वो चली गई


कई साल पहले हमारे एक शनासा ने दिल्ली का एक क़िस्सा सुनाया था... आज न जाने क्यूं याद आ गया...
एक लड़का था और एक लड़की... लड़का बिहार का रहने वाला था... लड़की झारखंड की थी... दोनों में प्यार था, जैसा बताया गया... हुआ यूं कि एक रोज़ दोनों कहीं से आ रहे थे... लड़का मोटर साइकिल चला रहा था और लड़की उसके पीछे बैठी थी... जिस तरह लड़की ने उस लड़के को अपनी बांहों की गिरफ़्त में लिया हुआ था, उससे साफ़ ज़ाहिर था कि दोनों में मुहब्बत है...
रात का वक़्त था और सर्दियों का मौसम... हमारे शनासा अपने दोस्त के साथ सड़क किनारे खड़े बात कर रहे थे... तभी अचानक एक गाड़ी ने मोटर साइकिल को टक्कर मार दी... मोटर साइकिल घिसटते हुए दूर जा गिरी... लड़के को बहुत ज़्यादा चोट आई थी... वो सड़क पर बेसुध पड़ा था... चोट लड़की को भी चोट आई थी, लेकिन शायद उसे ज़्यादा चोट नहीं लगी थी... जल्द ही वह उठ बैठी और अपने कपड़े झाड़ते हुए उसने एक ऒटो को इशारा करके रोका... फिर उसमें बैठकर चली गई... उसने नज़र भरकर भी लड़के को नहीं देखा कि वह ज़िन्दा भी है या नहीं... बस उसे जाने की जल्दी थी और इस बात की फ़िक्र कि कहीं कोई उसे न देख ले...
हमारे शनासा ये सब देख रहे थे... उन्होंने अपने दोस्त की मदद से उसे अस्पताल पहुंचाया... कुछ और लोगों ने भी उनकी मदद की... उन्होंने लड़के के परिचितों को फ़ोन किया... लड़के के पैर में फ़्रेक्चर हो गया था... उस लड़के ने ही उन्हें बताया कि वह उस लड़की से प्यार करता है... उसे इस बात का दुख था कि लड़की उसे ज़ख़्मी हालत में सड़क पर पड़ा छोड़कर चली गई...

सोचते हैं, ये कैसी मुहब्बत है, जो अपने महबूब को ज़ख़्मी हालत में सड़क पर छोड़ कर चली जाए...
हम तो इसे मुहब्बत क़तई नहीं कहेंगे...

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अपना घर...


फ़िरदौस खान
जब हम अपनी एक क़रीबी रिश्तेदार के घर जाते हैं, तो रास्ते में एक घर पड़ता है... यूं तो वहां और भी घर हैं, लेकिन हमें यह घर बहुत अच्छा लगता है... इसलिए एक घर ही कहेंगे... ज़िक्र भी इसी घर का है... कोने का घर है, यानी उसके दो तरफ़ सड़क है... आसपास की जगह ख़ाली पड़ी है... इस घर की ख़ास बात यह है कि यह घर सिर्फ़ 17 गज़ ज़मीन पर बना है... ज़मीन के एक छोटे से टुकड़े पर एक कमरा बना है... कमरे के अंदर ही सीढ़ी है, जो छत पर जाती है... छत पर किचन, बाथरूम और टॊयलेट बने हुए हैं, जिनकी छतें टीन की चादरों से बनी हैं... एक दो छती भी है... घर के आगे चबूतरा बना है... चबूतरे के पास ही नल है... हम जब भी उधर जाते हैं, तो दूर से ही घर दिख जाता है... उस घर को देखना बहुत अच्छा लगता है... चबूतरे पर एक औरत बैठी रहती है... घर के काफ़ी सारे काम वो इसी चबूतरे पर बैठ कर करती है... वो कपड़े धोती है, बर्तन धोती है, सब्ज़ी काटती है, दाल-चावल बीनती है... उसके पास ही उसके दो छोटे-छोटे बच्चे खेलते रहते हैं... घर बहुत छोटा है, लेकिन उसका अपना है... यानी उसका अपना घर... 
कितने प्यार से उसने इसे बनाया होगा, संवारा होगा... इसकी एक-एक ईंट में अपना घर होने की ख़ुशी का अहसास बसा होगा... है न...  
इस दुनिया में कितने ही लोग ऐसे हुआ करते हैं, जिन्हें अपना घर कभी नसीब नहीं होता...

तस्वीर : गूगल से साभार
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सुख...


मुहब्बत के सुख
ज़िन्दगी का सवाब
और
मुहब्बत के दुख
ज़िन्दगी का अज़ाब...
-फ़िरदौस ख़ान
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हरे कांच की चूड़ियां...


मेरे महबूब !
आज भी यादों में
खनक उठती हैं
हरे कांच की चूड़ियां...
यूं लगता है
जैसे तुमने
इन्हें हौले से छुआ हो...
-फ़िरदौस ख़ान
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