हरे बॊर्डर वाली पीली साड़ी...


साड़ी... रंग-बिरंगी साड़ियां किसी का भी मन मोह लेती हैं. हमें साड़ी बहुत पसंद है. ख़ासकर बॉर्डर वाली साड़ियां. किसी भी ख़ास मौक़े पर हम साड़ी ही बांधते हैं. दफ़्तर में जींस-शर्ट या जींस कुर्ता ही हमें ठीक लगता है. सफ़र के दौरान भी जींस-शर्ट से बेहतर कोई पहनावा नहीं. घर में तो सलवार-कमीज़ या लॉन्ग स्कर्ट कुछ भी पहन लो.

जब दूरदर्शन में पहला कार्यक्रम था, तो हमसे कहा गया कि हमें बॉर्डर वाली साड़ी पहननी है. कहने को तो हमारे पास बहुत-सी साड़ियां थीं, जो पापा मम्मा के लिए लाते थे. सभी ज़री वाली साड़ियां थीं. जैसी बॉर्डर वाली सादी साड़ी हमें चाहिए थी, वह हमारे पास नहीं थी. शाम भी काफ़ी हो चुकी थी. बाज़ार से साड़ी ले भी आते, लेकिन ब्लाऊज़ का क्या करें. यही दिक़्क़त पेश आ रही थी. हमने पड़ौस की आंटी से बात की कि क्या वह सुबह 11 बजे तक हमें ब्लाऊज़ सील कर दे सकती हैं. उन्होंने इतने जल्दी ब्लाऊज़ सील कर देने से मना कर दिया. अच्छी बात यह रही कि उन्होंने हमारी परेशानी हल कर दी. उन्होंने हमें अपनी नई हरे बॉर्डर वाली पीली साड़ी दी और ब्लाऊज़ की दोनों तरफ़ कच्ची सिलाई करके उसे हमारे नाप का बना दिया. हम बहुत ख़ुश थे.

हमने हरे बॉर्डर वाली पीली साड़ी पहनकर कार्यक्रम किया. कार्यक्रम बहुत अच्छा रहा. उसके बाद तो हमने बॉर्डर वाली कई साड़ियां ख़रीदीं. आज हमारे पास इतनी साड़ियां हैं कि हमें उनकी गिनती तक याद नहीं. बाज़ार में कुछ भी लेने जाएं, कोई साड़ी पसंद आ जाए, तो ख़रीद ही लेते हैं. लेकिन हरे बॉर्डर वाली पीली साड़ी को हमें कभी नहीं भूल सकते. वह तो हमारी यादों में बस चुकी है. हमें बसंत पंचमी के लिए एक साड़ी ख़रीदनी है. सोच रहे हैं कि हरे बॉर्डर वाली पीले रंग की साड़ी ही लें.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
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