समन के साये...


मेरे महबूब !
इसी तपती हुई धूप में
चलकर
आ सकते हो,
तो आ जाओ,
क्योंकि
मेरे घर की राह में
समन के घने साये नहीं मिलते...
फ़िरदौस ख़ान

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1 Response to "समन के साये..."

  1. विभूति" says:
    9 अक्तूबर 2013 को 7:56 pm बजे

    मन के भावो को शब्द दे दिए आपने......

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