شوگر کا گھریلو علاج
-
* فردوس خان*
شوگر ایک ایسی بیماری ہے جس کی وجہ سے انسان کی زندگی بہت بری طرح متاثر
ہوتی ہے۔ وہ مٹھائیاں، پھل، آلو، کولکاشیا اور اپنی پسند کی بہت سی د...
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30 मार्च 2010 को 8:02 pm बजे
BAHUT SUNDAR RACHANA
SHEKHAR KUMAWAT
http://rajasthanikavitakosh.blogspot.com/
30 मार्च 2010 को 9:17 pm बजे
Kya bat hai FIRDAUS ji . bahut acchi lagi aapki ye Najjm
30 मार्च 2010 को 10:19 pm बजे
अभी तो तपन ही तपन है अगन है और जलन है -बरखा बहार तो बहुत दूर है -अच्छी कविता !
30 मार्च 2010 को 11:32 pm बजे
वाह ....Firdaus जी गज़ब का लिखतीं हैं आप .......!!
30 मार्च 2010 को 11:34 pm बजे
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
31 मार्च 2010 को 12:57 am बजे
काश ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाये... बरसात का मौसम
आपका लेखन, ये शैली....और शब्दों को इतने खूबसूरत अंदाज़ में पेश करने का फ़न....
आपकी नज़्मों का इंतज़ार करने पर मजबूर कर देता है.
2 अप्रैल 2010 को 8:43 pm बजे
काश
ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाए
बरसात का मौसम...
मोहतरमा, जवाब नहीं आपका. शाहिद साहब से सहमत हैं.....
हमें भी आपकी नज़्मों का बेसब्री से इंतज़ार रहता है.....
4 अप्रैल 2010 को 10:42 pm बजे
माहिर हैं आप नज़्म कहने के फन में खुबसूरत बातें करतीं है आप अपनी नज्मों में और तभी सही है के आप बातें वो करें जो आम इंसान तक आपकी बातें पहुंचे!
आपको badhaaee...
अर्श
6 अप्रैल 2010 को 8:13 am बजे
काश!
कभी ज़िन्दगी के आंगन में
आकर ठहर जाए
बरसात का मौसम...
हमेशा की तरह आपका सबसे जुदा अंदाज़.....
हम जब भी आपकी नज़्में पढ़ते हैं.....
बेचैन हो उठते हैं....और यह बेचैनी एक लंबे अरसे तक महसूस करते हैं....
28 मार्च 2012 को 9:15 pm बजे
क्या बात है! आज फेसबुक पर अविनाश वाचस्पतिजी ने यह नज्म लगाई थी, वहीं से पीछा करते-करते यहां तक आ गई। बहुत बढ़िया..