ज़िन्दगी एक सहरा है...और ख़ुशियां सराब...इंसान ख़ुशियों को अपने दामन में समेट लेने के लिए क़दम जितने आगे बढ़ाता है...ख़ुशियां उतनी ही उससे दूर होती चली जाती हैं...शायद, यही ज़िन्दगी है...
फिरदौस साहिबा, 'इंसान जितना.....यही ज़िंदगी है ऐसा क्यूं सोचती हैं आप? जिगर साहब का एक शेर समाअत फरमायें- चला जाता हूं हंसता खेलता दौरे-हवादिस से अगर आसानियां हों, ज़िंदगी दुश्वार हो जाये... शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
शायरा, लेखिका और पत्रकार. लोग लफ़्ज़ों के जज़ीरे की शहज़ादी कहते हैं.
उर्दू, हिन्दी, इंग्लिश और पंजाबी में लेखन. दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कई साल तक सेवाएं दीं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का सम्पादन किया. ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण. ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लेखन. फ़हम अल क़ुरआन लिखा. सूफ़ीवाद पर 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए अनेक पुरस्कारों ने सम्मानित. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत की. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम ली. फ़िलहाल 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक हैं.
अपने बारे में एक शेअर पेश है- नफ़रत, जलन, अदावत दिल में नहीं है मेरे
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कल यानी 1 जून को हमारा जन्मदिन है. अम्मी बहुत याद आती हैं. वे सबसे पहले
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گناہ مانا جات...
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*अल्लाह के नाम से शुरू, जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है*1. ता सीन. ये
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*Firdaus Khan*
The Congress vice president Rahul Gandhi delivering a speech at Institute
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फ़िरदौस ख़ान
इस बलॊग में ज़्यादातर तस्वीरें गूगल से साभार ली गई हैं
20 दिसंबर 2009 को 12:35 am बजे
कोमल भावों की प्रभावशाली अभिव्यक्ति। -
http://drashokpriyaranjan.blogspot.com
http://www.ashokvichar.blogspot.com
20 दिसंबर 2009 को 12:36 am बजे
वाह बहुत सुंदर बात
20 दिसंबर 2009 को 1:32 am बजे
फिरदौस साहिबा,
'इंसान जितना.....यही ज़िंदगी है
ऐसा क्यूं सोचती हैं आप?
जिगर साहब का एक शेर समाअत फरमायें-
चला जाता हूं हंसता खेलता दौरे-हवादिस से
अगर आसानियां हों, ज़िंदगी दुश्वार हो जाये...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
20 दिसंबर 2009 को 8:05 am बजे
उलझन जीवन की सखा कभी न छूटे साथ।
खुशियाँ मिलतीं हैं तभी मिले हाथ से हाथ।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
20 दिसंबर 2009 को 12:16 pm बजे
सही बात कही आपने शुभकामनायें