बारिश में भीगती है कभी उसकी याद तो

नगमें रफ़ाक़तों के सुनाती हैं बारिशें
अरमान ख़ूब दिल में जगाती हैं बारिशें

बारिश में भीगती है कभी उसकी याद तो
इक आग-सी हवा में लगाती हैं बारिशें

मिस्ले-धनक जुदाई के ल्म्हाते-ज़िंदगी
रंगीन मेरे ख़्वाब बनाती हैं बारिशें

ख़ामोश घर की छत की मुंडेरों पे बैठकर
परदेसियों को आस बंधाती हैं बारिशें

जैसे बगैर रात के होती नहीं सहर
यूं साथ बादलों का निभाती हैं बारिशें

सहरा में खिल उठे कई महके हुए चमन
बंजर ज़मीं में फूल खिलाती हैं बारिशें

'फ़िरदौस' अब क़रीब मौसम बहार का
आ जाओ कब से तुमको बुलाती हैं बारिशें
- फ़िरदौस ख़ान
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5 Response to "बारिश में भीगती है कभी उसकी याद तो"

  1. रंजू भाटिया says:
    12 सितंबर 2008 को 9:51 am बजे

    बारिश में भीगती है कभी उसकी याद तो
    इक आग-सी हवा में लगाती हैं बारिशें

    सही कहा आपने ..बहुत खूब

  2. Vinay says:
    12 सितंबर 2008 को 10:03 am बजे

    खूबसूरत ग़ज़ल!

  3. पारुल "पुखराज" says:
    12 सितंबर 2008 को 3:10 pm बजे

    khuubsurat baarish!!

  4. Shastri JC Philip says:
    12 सितंबर 2008 को 7:37 pm बजे

    "सहरा में खिल उठे कई महके हुए चमन
    बंजर ज़मीं में फूल खिलाती हैं बारिशें "

    वाह, क्या प्रस्तुति है!



    -- शास्त्री जे सी फिलिप

    -- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

  5. Unknown says:
    13 सितंबर 2008 को 8:44 am बजे

    नगमें रफ़ाक़तों के सुनाती हैं बारिशें
    अरमान ख़ूब दिल में जगाती हैं बारिशें


    बारिश में भीगती है कभी उसकी याद तो
    इक आग-सी हवा में लगाती हैं बारिशें

    सुब्हान अल्लाह...

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