तुलसी बांटने की ख़ुशी...


फ़िरदौस ख़ान
काफ़ी अरसे पहले की बात है. हमारे पड़ौस में रहने वाली गुंजा ने आवाज़ दी. हमने छत से देखा, तो वह घर के सामने बच्चे को गोद में लिए खड़ी थी. उसने कहा- क्या तुलसी का एक पौधा मिल सकता है? हमने कहा कि सुबह ले लेना, क्योंकि सूरज छुपने के बाद पौधों को तोड़ना या उखाड़ना अच्छा नहीं माना जाता. उसने भी हमारी बात के समर्थन में सर हिलाया और चली गई. अगले दिन सूरज निकलते ही वह तुलसी का पौधा लेने आ गई. जब उसने मरुआ तुलसी देखी, तो कहने लगी- क्या एक पौधा मरुआ का भी मिल सकता है? हमने कहा, क्यों नहीं. हमारे छोटे भाई ने उसे दो पौधे दे दिए और वह उन्हें लेकर खु़शी-ख़ुशी चली गई. अकसर छोटी-छोटी चीज़ें इंसान को बहुत खु़शी और सुकून देती हैं. हमारे घर के लोग ये खु़शी अकसर बांटते रहते हैं. हमारे घर तुलसी के बहुत से पौधे हैं. हमारे इलाक़े के लोग अकसर हमारे घर से तुलसी के पौधे ले जाते हैं. अब तो हालत यह है कि लोग अपने परिचितों को भी हमारे यहां के पौधे भेंट करते हैं. इतना ही नहीं, पौधे बेचने वाले भी हमारे यहां से अकसर तुलसी के पौधे ले जाते हैं. यह सिलसिला पिछली क़रीब दो दहाई से चल रहा है.

हिन्दू धर्म में तुलसी को पवित्र माना जाता है. लोग घर के आंगन में तुलसी का चौरा बनाते हैं और हर सुबह उसकी पूजा करते हैं. हमारे यहां तुलसी की कई क़िस्में हैं, जिनमें प्रमुख तुलसी यानी ऑसीमम सैक्टम, काली तुलसी और मरुआ तुलसी शामिल हैं. तुलसी कई क़िस्म की होती है, जिनमें ऑसीमम अमेरिकन यानी काली तुलसी, ऑसीमम वेसिलिकम यानी मरुआ तुलसी, ऑसीमम वेसिलिकम मिनिमम, ऑसीमम ग्रेटिसिकम यानी राम तुलसी, बन तुलसी, ऑसीमम किलिमंचेरिकम यानी कपूर तुलसी, बेल तुलसी, ऑसीमम सैक्टम यानी श्री तुलसी और ऑसीमम विरिडी यानी जंगली तुलसी शामिल है. इनमें ऑसीमम सैक्टम को सबसे पवित्र तुलसी माना जाता है. इसकी दो प्रजातियां हैं, पहली श्री तुलसी जिसकी पत्तियां हरी होती हैं और दूसरी कृष्णा तुलसी, जिसकी पत्तियां कुछ बैंगनी रंग की होती हैं. गुण, धर्म की दृष्टि से काली तुलसी को ही श्रेष्ठ माना गया है, लेकिन ज़्यादातर विद्वानों का मत है कि दोनों तरह की तुलसी के गुण एक जैसे ही होते हैं.

क़ाबिले-ग़ौर है कि मंदिरों में देवताओं को तुलसी चढ़ाई जाती है. गया के विष्णुपद मंदिर को ही लीजिए, यहां हर रोज़ श्रीविष्णु के चरणों में तुलसी अर्पित की जाती है. पितृपक्ष मेले के दौरान श्रृंगार और पूजा अर्चना में हर रोज़ क़रीब एक क्विंटल तुलसी की खपत होती है. शहर के आसपास के इलाक़ों में तुलसी का उत्पादन होता है. इसके अलावा पश्चिम बंगाल से भी तुलसी मंगाई जाती है. पूजन कार्यों में तुलसी को प्रमुखता दी जाती है. मंदिरों में चरणामृत में भी तुलसी का ही इस्तेमाल होता है. माना जाता है कि यह अकाल मौत से बचाने वाली और सर्व व्याधियों का नाश करने वाली हैं. ख़ास बात यह है कि यही पूज्य तुलसी श्रीगणेश की पूजा में निषिद्ध मानी गई हैं. एक कथा के मुताबिक़ एक बार तुलसी देवी नारायण परायण होकर तपस्या के निमित्त से तीर्थों में भ्रमण करती हुई गंगा तट पर पहुंचीं. वहां उन्होंने श्रीगणेश को देखा, जो योगीराज श्रीकृष्ण की आराधना में लीन थे. उन्हें देखते ही तुलसी उनके रूप पर मोहित हो गईं उनका ध्यान भंग करने के लिए श्रीगणेश का उपहास उड़ाने लगीं. ध्यानभंग होने पर श्रीगणेश ने उनसे उनका परिचय पूछा और उनके वहां आगमन का कारण जानना चाहा. इस पर तुलसी ने उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा. श्रीगणेश ने कहा कि वह ब्रह्मचारी हैं और विवाह नहीं कर सकते. इंकार सुनकर तुलसी ने श्रीगणेश को शाप देते हुए कहा- आपका विवाह ज़रूर होगा. इस पर श्रीगणेश ने भी तुलसी को शाप दिया- देवी, तुम भी निश्चित रूप से असुरों द्वारा ग्रस्त होकर वृक्ष बन जाओगी. इस शाप को सुनकर तुलसी ने व्यथित होकर श्रीगणेश की वंदना की. तब ख़ुश होकर गणेशजी ने तुलसी से कहा कि आप पौधों की सारभूता बनेंगी और समयांतर से भगवान नारायण की प्रिया भी बनेंगी. सभी देवता आपसे स्नेह रखेंगे, लेकिन श्रीकृष्ण के लिए आप विशेष प्रिय रहेंगी. आपकी पूजा मनुष्यों के लिए मुक्तिदायिनी होगी, लेकिन मेरे पूजन में आप सदैव त्याज्य रहेंगी. ऐसा कहकर श्रीगणेश तप करने चले गए. मगर तुलसी देवी दुखी होकर पुष्कर में जा पहुंचीं और निराहार रहकर तपस्या में लीन हो गईं. यहां वह श्रीगणेश के शाप से चिरकाल तक शंखचूड की पत्नी बनी रहीं. जब शिव के त्रिशूल से उसकी मौत हो गई, तो वह नारायण प्रिया तुलसी के पौधे के रूप में सामने आईं. एक अन्य मान्यता के अनुसार तुलसी को पूर्व जन्म में जालंधर नामक दैत्य की पत्नी बताया गया है. जालंधर नामक दैत्य के अत्याचारों से त्रस्त होकर भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से जालंधर का वध किया था. पति की मौत से दुखी तुलसी सती हो गईं. उनके भस्म से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ. तुलसी के त्याग से ख़ुश होकर विष्णु ने तुलसी को अपनी पत्नी बना लिया और वरदान भी दिया कि जो भी तुम्हारा विवाह मेरे साथ करवाएगा, वह मोक्ष प्राप्त करेगा. इसलिए कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को विष्णु से तुलसी का विवाह करने का प्रचलन है.

भारतीय संस्कृति के चिर पुरातन ग्रंथ वेदों में भी तुलसी के गुणों और इसकी उपयोगिता का ज़िक्र मिलता है. इसके अलावा दवाओं में भी तुलसी का ख़ूब इस्तेमाल किया जाता है. यह भी कहा जाता है कि जहां तुलसी का पौधा होता है, वहां मच्छर नहीं आते. नज़ला-ज़ुकाम और बुख़ार होने पर तुलसी की पत्तियों का काढ़ा पीने से आराम मिलता है. तुलसी की लकड़ी की मालाएं भी बनाई जाती हैं. पौधे घर की ख़ूबसूरती में भी चार चांद लगाते हैं और इनसे पर्यावरण भी हरा-भरा रहता है. हां, पौधे भेंट करने से ख़ुशी और सुकून भी तो मिलता है. है न?

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परिजात के फूल...


काफ़ी अरसे पहले की बात है. हम अपने कमरे में बैठे थे, तभी हमारी सखियां आ गईं और कहने लगीं आज मन्दिर चलते हैं. हमने कहा क्या बात है, आज कोई ख़ास दिन है. वे कहने लगीं कि मन्दिर के पास मेले जैसा माहौल होता है. मन्दिर भी हो आएंगे और कुछ चूड़ियां और मोती की मालाएं भी ले आएंगे. हमें कांच की चूड़ियों और मोती की मालों का बचपन से ही शौक़ रहा है. हमने अम्मी से पूछा, तो वो कहने लगीं. ठीक है, साथ में सुशीला को भी लेती जाना. सुशीला आंटी हमारी हमसाई थीं.
हम मन्दिर गए. मन्दिर के पास पूरी हाट लगी थी. लोग ख़रीदारी कर रहे थे. हमारी सहेलियां भी ख़रीदारी में लग गईं. सोचा जब तक सहेलियां ख़रीदारी कर रही हैं, तब तक मन्दिर की वाटिका ही देख ली जाए. वाटिका बहुत सुन्दर थी. त्रिवेणी के अलावा फूलों के कई पेड़ थे. उनमें पारिजात का पेड़ भी था. पूरा पेड़ सफ़ेद फूलों से भरा हुआ था. हमने कहीं सुना था कि पारिजात का पेड़ स्वर्ग का वृक्ष है और यह देवताओं को बहुत प्रिय है. श्रीकृष्ण की पत्नी को पारिजात के फूल बहुत पसंद थे, इसलिए श्रीकृष्ण पारिजात को धरती पर ले आए थे. हम मन ही मन में श्रीकृष्ण की पत्नी का शुक्रिया अदा करने लगे, क्योंकि शायद उनकी वजह से ही आज हम इस पेड़ के इतने क़रीब थे. 
पेड़ के पास बहुत से फूल बिखरे पड़े थे. हम ज़मीन पर बैठकर फूल चुनने लगे, तभी मन्दिर के पुजारी, वहां आ गए और कहने लगे कि ज़मीन से फूल क्यों चुन रही हो. इस पेड़ से जितने चाहो फूल तोड़ सकती हो. हमने पंडित जी का शुक्रिया अदा किया और पारिजात के फूल तोड़कर अपने दुपट्टे में इकट्ठे करने लगे. हमने एक अंजुली फूल इकट्ठे कर लिए. तब तक हमारी सहेलियां और आंटी भी वहां आ गईं. फिर हम मन्दिर के अंदर दाख़िल हुए. वहां छोटे-छोटे मन्दिर बने थे. किसी में राम और सीता की मूर्ति थी, किसी में हनुमान जी की मूर्ति थी, किसी में देवी संतोषी की, तो किसी में किसी और देवता की मूर्ति सजी थी. आंटी ने सभी मन्दिरों में घंटी बजाकर माथा टेका. हमारी सहेलियां भी ऐसा ही कर रही थीं. हम भी सबके साथ-साथ चल रहे थे. 
आख़िर में एक और मन्दिर आया, जिसमें श्रीकृष्ण की मनोहारी प्रतिमा थी. पीला लिबास धारण किए हुए. हाथ में बांसुरी और होंठों पर मोहक मुस्कान. हम सोचने लगे. श्रीकृष्ण के इसी रूप पर फ़िदा होकर रसखान से लेकर अमीर ख़ुसरो तक कितने ही सूफ़ी-संतों ने श्रीकृष्ण पर गीत रच डाले हैं. हम फ़ौरन प्रतिमा की तरफ़ बढ़े और हमारे हाथ में जितने पारिजात के फूल थे, सभी श्रीकृष्ण के क़दमों में रख दिए.
तभी पंडित जी बोल पड़े- ऐसा लगता है, जैसे श्रीकृष्ण की राधा ने ही पुष्प भेंट किए हों. आंटी और हमारी सहेलियों ने पंडित जी की हां में हां मिलाई. हमने प्रसाद लिया और घर आ गए.
पारिजात के फूल चुनने से लेकर श्रीकृष्ण के क़दमों में रखने तक हमने जो लम्हे जिए और वो हमारी इक उम्र का सरमाया हैं. आज भी जब पारिजात के फूल देखते हैं, तो दिल को अजीब-सा सुकून महसूस होता है. हम नहीं जानते कि श्रीकृष्ण और पारिजात के फूलों से हमारा कौन-सा रिश्ता है.
-फ़िरदौस ख़ान
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खिला-खिला दिन


आज कितना खिला-खिला दिन है. अम्बर पर सूरज चमक रहा है. ज़मीन पर बिखरी हुई सूरज की सुनहरी किरनें कितनी भली लग रही हैं. गहरे नीले आसमान पर दूधिया बादल उड़े-उड़े फिर रहे हैं. क्यारियों में लगी चमेली की शाख़ें हवा में झूम रही हैं. गुलाब और बेला भी अपनी महक से फ़िज़ा को रूमानी बना रहे हैं. कितना सुहाना मौसम है. दिल चाहता है कि ये वक़्त यही ठहर जाए.
फ़िरदौस ख़ान 



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दोस्त


सबसे क़रीबी दोस्त वह होता है, जिससे इंसान अपने महबूब के बारे में बात करता है, अपने ख़्वाबों के बारे में बात करता है. अपने दुख-सुख के बारे में बात करता है. बाक़ी तो रस्मी दोस्त ही हुआ करते हैं. 
फ़िरदौस ख़ान 
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दोस्तियां...


फ़िरदौस
कुछ लोग सिर्फ़ सोशल साइट्स तक ही महदूद हुआ करते हैं, सोशल साइट्स पर आए, तो दुआ-सलाम हो गया, वरना तुम अपने घर और हम अपने घर. कुछ लोग कारोबार यानी दफ़्तर तक की महदूद होते हैं. आमना-सामना हुआ, तो हाय-हैलो हो गई. कुछ लोग सोशल फ़ील्ड तक ही महदूद रहा करते हैं.
कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो मेहमानों की तरह घर पर भी आ जाते है, और मेहमान नवाज़ी के बाद रुख़्सत हो जाते हैं. इन सबके बीच कुछ ऐसे लोग भी होते हैं, जो हमारे बावर्चीख़ाने तक आते हैं. यक़ीन मानिये, जो दोस्तियां या रिश्ते घर के बावर्चीख़ाने तक पहुंच जाते हैंहैं, वह ताउम्र के हो जाते हैं.
हमारी बचपन से एक आदत रही है. स्कूल से कॊलेज और कॊलेज से दफ़्तर तक जिन लोगों से हमारी आशनाई रही है, उनसे हमने घर तक का रिश्ता रखा. यानी हमारे घरवाले उन सभी लोगों को जानते हैं, और उन लोगों के घरवाले भी हमसे वाक़िफ़ हैं. ये हमने अपने परिवार से ही सीखा. पापा के दोस्तों के घरवाले और हमारी अम्मी की सहेलियों के घरवालों का हमारे घर आना-जाना रहता था. हमने भी ऐसा ही किया. त्यौहारों पर अपनी सहेलियों, अपने दफ़्तर के सहकर्मियों को घर पर बुलाना. उनके घर जाना. इस तरह सब हमारे पारिवारिक दोस्त होकर रहे. फ़ेसबुक पर ऐसे कई लोग हैं, जो हमारे पारिवारिक मित्र हैं. अगर हमारा फ़ोन ना मिले, तो वे हमारे घर के नंबर पर फ़ोन कर लेते हैं. फ़ेसबुक पर एक ऐसे पारिवारिक मित्र भी हैं, जिन्हें हम अपनी दूसरी मां कहते हैं. क्योंकि वो हमारी इतनी ही फ़िक्र करते हैं, जितनी कोई मां अपने बच्चे की करती है.
कई साल पहली की बात है. हमारे एक आशनाई अपनी बहन के साथ घर आए. हमारी तबीयत ठीक नहीं थी. वह बोले कि भूख लग रही है. हमने कहा कि आज हमने खाना नहीं पकाया. आप शिबली से पकवा लें. कहने लगे कि अब हंस कर पकाओ या रोकर, पर खाना तुम्हारे हाथ का ही खाऊंगा. इसलिए उठो, और कुछ पका लो.
हमने मन न होते हुए भी बिरयानी पकाकर दी. उनकी बहन भी कम नहीं थी. छुट्टी के दिन आ जाती और कहती कि आज कुछ नई चीज़ खाने का मन है. चलो, कुछ पकाकर खिलाओ. हम नये-नये पकवान बनाते. कभी कोई मुग़लई पकवान बनाते, तो कभी दक्षिणी भारयीय व्यंजन. वह खाकर कहती, किसी होटल में शेफ़ थी क्या 🙂  
हम मूवी देखते. कॊल्ड ड्रिंक्स पीते. बहुत अच्छा वक़्त बीतता.
जिस दिन उनकी अम्मी बिरयानी बनातीं, अल सुबह ही हमारे पास कॊल आ जाती कि शाम को घर पर बिरयानी पक रही है. इसलिए दफ़्तर से सीधा घर आ जाना. और दिन भर न जाने कितनी कॊल्स आतीं.
हमने घर तक का रिश्ता रखा, इसलिए स्कूल के दिनों तक की दोस्तियां आज भी क़ायम हैं. रिश्तों में उतनी ही शिद्दत और ताज़गी है, जितनी शुरू में हुआ करती है.
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

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