एक क़बूतर, जिसे हम कभी भूल नहीं पाएंगे...

जो चीज़ें हमें ख़ुशी देती हैं, दुख भी अकसर उन्हीं से मिला करता है... किसी से लगाव होना एक इंसानी फ़ितरत है, एक अहसास है... लगाव जहां ख़ुशी देता है, वहीं आंखें भी नम कर देता है...

हाल ही की बात है... हमने खिड़की खोली तो, सामने वाले घर की खिड़की के नीचे एक क़बूतर लटका हुआ था... उसकी गर्दन में मांझा फंसा हुआ था... यौमे-आज़ादी के दिन दिन भर ख़ूब पतंगें उड़ाई गईं... किसी कटी पतंग का मांझा क़बूतर की गर्दन में फंस गया... जिससे उसकी मौत हो गई...

हमारी निगाहें आज इसी क़बूतर को तलाश रही थीं... लेकिन हमें ये नहीं पता था कि वह मर चुका है... दरअसल, इस क़बूतर की गर्दन पर एक निशान था... हम जब भी दाना डालने जाते, वह सबसे पहले आ जाता... अगर दाना ख़त्म हो जाता, और उसके भूख लग रही होती, तो अंगनाई में हमारा सामने टहलने लगता... उसे देखकर हम समझ जाते कि उसे भूख लगी है...

कुछ दिन पहले की बात है... बहुत तेज़ बारिश हुई थी... सारा दाना बारिश के पानी में बह गया... हम अंगनाई धो रहे थे... वह कबूतर हमारे सामने आकर मुंडेर पर बैठ गया... हमने उनसे कहा कि क़बूतर को दाना डाल दो... उन्होंने कहा कि तुम ही दाना डालो... हमने कहा कि हम अंगनाई धो रहे हैं, आप ही दाना डाल दो... उन्होंने दाना डाला, लेकिन क़बूतर दूर बैठा देखता रहा, दाने के पास नहीं आया... उन्होंने कहा, "मैंने पहले ही कहा था कि तुम दाना डालो. देखा क़बूतर नहीं आया न... वो तुम्हारे डाले हुए दाने ही खाएगा"...

जैसे ही हम दाना डालने के लिए गए, हमें देखते ही क़बूतर नीच आ गया... और दाना चुगने लगा... उसकी देखादेखी और क़बूतर भी आ गए...

सच ! परिन्दों को भी कितनी पहचान होती है अपने-पराये की...  न जाने क्यों उसका अक्स हमारी नज़रों के सामने से हट ही नहीं पा रहा है... इस क़बूतर को हम कभी नहीं भूल पाएंगे...
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)

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सजदा...

मेरे महबूब !
दुनिया
इसे शिर्क कहे
या
गुनाहे-कबीरा
मगर
ये हक़ीक़त है
दिल ने
एक सजदा
तुम्हें भी किया है
और तभी से
मेरी रूह सजदे में है...
-फ़िरदौस ख़ान
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इल्मे-सीना

इल्मे-सीना इल्मे-सीना के बारे में बहुत कम लोग जानना चाहते हैं... दरअसल, इल्मे-सीना आपको किताबों में नहीं मिलता... इसे समझना पड़ता है... और इसे समझने के लिए एक रौशन ज़ेहन और वसीह दिल चाहिए...
जिस तरह पानी को साफ़ रखने के लिए साफ़ बर्तन की ज़रूरत होती है, उसी तरह इल्मे-सीना के लिए भी दिल का साफ़ होना बेहद ज़रूरी है... इसके लिए एक ऐसा दिल चाहिए, जो ख़ुदग़र्ज़ न हो, कमज़र्फ़ न हो... इतनी समझ चाहिए कि इंसान समझ सके कि क्या सही है और क्या ग़लत है... दूसरों में ऐब तलाशने की बजाय ख़ुद के अंदर झांकना होगा... और ये जानना होगा कि कहीं हमारे चेहरे पर ही तो गर्द नहीं जमी है, और हम सारा क़ुसूर आइने को दे रहे हैं... इसके लिए ऊंच-नीच, जात-पांत और किसी भी तरह के भेदभाव से ऊपर उठना होगा... यह भी याद रखना होगा कि ख़ुदा की मख़लूक से नफ़रत करके ख़ुदा को नहीं पाया जा सकता...
कबीर चचा कह गए हैं-
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय...
यक़ीन करें, जिसने प्रेम के ढाई आखर पढ़ लिए और समझ लिए, उसका बेड़ा पार हो गया...
(Firdaus Diary)

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दोस्तों और जान-पहचान वालों में क्या फ़र्क़ होता है...


एक सवाल अकसर पूछा जाता है, दोस्तों और जान-पहचान वालों में क्या फ़र्क़ होता है...?
अमूमन लोग इसका जवाब भी जानते हैं... कई बार हम जानते हैं, और समझते भी हैं, लेकिन अपने ख़्यालात को, अपने अहसासात को बयान करने के लिए अल्फ़ाज़ नहीं मिल पाते... सोचा, आज इसी पर लिखा जाए...
दोस्तों और जान-पहचान वालों में क्या फ़र्क़ होता है...?
फ़र्ज़ कीजिए आपको कोई काम है... आप सामने वाले से काम के लिए कहते हैं... काम उस शख़्स की पहुंच में है, यानी वो चाहे, तो फ़ौरन आपका काम कर सकता है...
इसके बावजूद वो आपका काम नहीं करता... बहाने बनाता है...
तो ये हुआ जान-पहचान वाला... अगर दोस्त होता, तो अपना काम छोड़कर आपका काम करता...
फ़र्ज़ कीजिए आपको कोई काम है... आप सामने वाले से काम के लिए कहते हैं... काम उस शख़्स की पहुंच में नहीं है, यानी वो चाहने पर भी आपका काम नहीं कर सकता है...
वो आपका काम करने की कोशिश करता है...
ये आपका दोस्त है... क्योंकि उसने आपके लिए कोशिश तो की...
बाज़ दफ़ा ऐसा भी होता है कि दोस्त आपके वक़्त पर काम नहीं आते और जान-पहचान वाले काम आ जाते हैं... अपवाद तो हर जगह ही हुआ करते हैं... हैं न...?
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ये बारिश है...

मेरे महबूब !
ये बारिश है
या
तुम्हारी मुहब्बत
जिसने
मेरी रूह तक को भिगो डाला...
-फ़िरदौस ख़ान

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दोस्तों और जान-पहचान वालों में क्या फ़र्क़ होता है

एक सवाल अकसर पूछा जाता है, दोस्तों और जान-पहचान वालों में क्या फ़र्क़ होता है...?
अमूमन लोग इसका जवाब भी जानते हैं... कई बार हम जानते हैं, और समझते भी हैं, लेकिन अपने ख़्यालात को, अपने अहसासात को बयान करने के लिए अल्फ़ाज़ नहीं मिल पाते... सोचा, आज इसी पर लिखा जाए...
दोस्तों और जान-पहचान वालों में क्या फ़र्क़ होता है...?
फ़र्ज़ कीजिए आपको कोई काम है... आप सामने वाले से काम के लिए कहते हैं... काम उस शख़्स की पहुंच में है, यानी वो चाहे, तो फ़ौरन आपका काम कर सकता है...
इसके बावजूद वो आपका काम नहीं करता... बहाने बनाता है...
तो ये हुआ जान-पहचान वाला... अगर दोस्त होता, तो अपना काम छोड़कर आपका काम करता...

फ़र्ज़ कीजिए आपको कोई काम है... आप सामने वाले से काम के लिए कहते हैं... काम उस शख़्स की पहुंच में नहीं है, यानी वो चाहने पर भी आपका काम नहीं कर सकता है...
वो आपका काम करने की कोशिश करता है...
ये आपका दोस्त है... क्योंकि उसने आपके लिए कोशिश तो की...

बाज़ दफ़ा ऐसा भी होता है कि दोस्त आपके वक़्त पर काम नहीं आते और जान-पहचान वाले काम आ जाते हैं... अपवाद तो हर जगह ही हुआ करते हैं... हैं न...?

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अच्छे दोस्त क़िस्मत से ही मिला करते हैं


हमारे दोस्तों में अमूमन सभी तरह के लोग हैं. आस्तिक हैं, नास्तिक भी हैं... ईसाई भी हैं, मुस्लिम भी हैं, हिन्दू भी हैं, सिख भी हैं.
संघी भी हैं, जमाती भी हैं. कम्युनिस्ट भी हैं, कांग्रेसी भी हैं, समाजवादी भी हैं.
शाकाहारी भी हैं, मांसाहारी भी हैं. ऐसे लोग भी हैं, जो शराब तो क्या सिगरेट तक को हाथ नहीं लगाते. ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें शाराब न मिले, तो नींद नहीं आती.
सबसे बड़ी बात ये है कि हमारे दोस्तों में ऐसा कोई नहीं है, जो जबरन सामने वाले से अपनी बात मनवाने की कोशिश करे, और उसकी बात न मानने पर दोस्ती ख़त्म कर दे.
हमारे आपस में मतभेद हो सकते हैं, हुए भी हैं, लेकिन मनभेद कभी नहीं हुआ. यही सबसे ख़ुशनुमा बात है. हमें अपने दोस्तों पर नाज़ है. अच्छे दोस्त क़िस्मत से ही मिला करते हैं. हैं न.

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दुआ, उन्हें दें


सबसे प्यारी दुआ वो हुआ करती है, जो महबूब के लिए की जाए...महबूब को दी जाए...
जब कोई हमें लंबी उम्र की दुआ देता है, तो दिल चाहता है कि उससे कह दें-
हमारे मोहसिन ! हमारे अज़ीज़ !
हमें लंबी उम्र की दुआ मत दो, क्योंकि हमारे होने या न होने से दुनिया को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा... फ़र्क़ पड़ेगा, तो सिर्फ़ हमारे घरवालों और कुछ अपनों को...
लंबी उम्र की दुआ देनी है, तो उसे दो, जिसके होने न होने से एक दुनिया को बहुत फ़र्क़ पड़ता है... बहुतों की उम्मीदें उससे वाबस्ता हैं...
कुछ लोगों को ख़ुदा ने इतनी ताक़त बख़्शी है कि वे करोड़ों लोगों की ज़िन्दगी को बेहतर बना सकते हैं...

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