ख़त...

ख़त...
दूधिया वरक़ों पर लिखे
ज़ाफ़रानी हर्फ़
उसने
काग़ज़ पर नहीं
मेरी रूह पर टांक दिए थे...
-फ़िरदौस ख़ान
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शायद, यही ज़िन्दगी है...

ज़िन्दगी एक सहरा है...और ख़ुशियां सराब...इंसान ख़ुशियों को अपने दामन में समेट लेने के लिए क़दम जितने आगे बढ़ाता है...ख़ुशियां उतनी ही उससे दूर होती चली जाती हैं...शायद, यही ज़िन्दगी है...
-फ़िरदौस ख़ान
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उसने कहा था...

नज़्म
वो ख़्वाब था
या हक़ीक़त
ज़हन में नहीं
बस इतना याद है
उसने कहा था-
मैं आऊंगा
मेरा इंतज़ार करना...
-फ़िरदौस ख़ान
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