شوگر کا گھریلو علاج
-
* فردوس خان*
شوگر ایک ایسی بیماری ہے جس کی وجہ سے انسان کی زندگی بہت بری طرح متاثر
ہوتی ہے۔ وہ مٹھائیاں، پھل، آلو، کولکاشیا اور اپنی پسند کی بہت سی د...
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14 दिसंबर 2009 को 3:13 pm बजे
यादों का एक सुन्दर एहसास।बहुत बढिया!!
14 दिसंबर 2009 को 4:11 pm बजे
छोटी रचना किन्तु अच्छे भाव फिरदौस जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
14 दिसंबर 2009 को 4:36 pm बजे
बहुत ही खूबसूरत कविता। और उतना ही सुंदर चित्र भी लगाया है आपने। बधाई स्वीकारें।
14 दिसंबर 2009 को 5:26 pm बजे
बहुत ही उम्दा दिल को छू लेने वाली प्रस्तुति .......
14 दिसंबर 2009 को 5:55 pm बजे
सुंदर एहसास के साथ ...खूबसूरत अभिव्यक्ति.....
16 दिसंबर 2009 को 12:37 am बजे
फिरदौस साहिबा,
यादों का न भूलने का अहसास
बिल्कुल नये अंदाज़ में करा दिया आपने
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
16 दिसंबर 2009 को 6:49 pm बजे
आश्चर्यजनक शब्द साम्य देखा, हमारी इक गजल का शेर भी यही बयां करता है।
वो जो मंदिरों-मजारों में धागे बंधे थे
,
धागे नहीं मेरी यादों के लम्हें टंगे थे
17 दिसंबर 2009 को 10:23 pm बजे
वाह!!!! इसके आगे मेरी बोलती बंद है!
6 मार्च 2010 को 9:17 pm बजे
बस्ती से दूर
किसी खामोश मक़ाम पर
बने दूधिया मज़ारों के पास खड़े
दरख्त की शाखों पर बंधे
मन्नतों के पीले धागे
कितने बीते लम्हों की
याद दिला जाते हैं...
अल्लाह आपकी मन्नतों को पूरा करे.......आमीन.......
18 अप्रैल 2012 को 1:00 pm बजे
एक दूसरे को बेपह्चाने
भागती-दौड्ती भीड़ में
सिमेंट-कोंक्रेट के तपते इस जंगल में...
एक शबनमी लम्हा... एक ठंडी बूँद
टपकी...
फिर यादों की लहर फैल-सी गई भीतर...
और इन मसरूफियतों के बीच,
दूधिया मज़ार और मन्नतों के धागे
झिलमिलाए यादों में
उस बहुत पीछे छूट गई दुनियाँ के...
इन ताज़ा-ताज़ा एह्सासातों के लिए
शुक्रिया फ़िरदौस जी...