तुम समझ लेना, मैं तुम्हें याद करती हूं...
जब सुबह सूरज की
चंचल किरनें
पेशानी को चूमें
और शोख़ हवायें
बालों को सहलायें
तब
तुम समझ लेना
मैं तुम्हें याद करती हूं...
जब
ज़मीन पर
चांदनी की चादर
बिछ जाए
और फूल
अपनी भीनी-भीनी महक से
माहौल को
रूमानी कर दें
हर सिम्त
मुहब्बत का मौसम
अंगड़ाइयां लेने लगे
तब
तुम समझ लेना
मैं तुम्हें याद करती हूं...
-फ़िरदौस ख़ान
चंचल किरनें
पेशानी को चूमें
और शोख़ हवायें
बालों को सहलायें
तब
तुम समझ लेना
मैं तुम्हें याद करती हूं...
जब
ज़मीन पर
चांदनी की चादर
बिछ जाए
और फूल
अपनी भीनी-भीनी महक से
माहौल को
रूमानी कर दें
हर सिम्त
मुहब्बत का मौसम
अंगड़ाइयां लेने लगे
तब
तुम समझ लेना
मैं तुम्हें याद करती हूं...
-फ़िरदौस ख़ान
5 नवंबर 2008 को 3:25 pm बजे
क्या बात है!
ऐसे अगर कोई याद करने वाला होता.....
तो कोई तनहा क्यो होता कोई उदास क्यो होता.
ऐसे शोख पैगाम के बाद और क्या तमन्ना होगी.
काश........
5 नवंबर 2008 को 3:31 pm बजे
जब
ज़मीन पर
चांदनी की चादर
बिछ जाए
और फूल
अपनी भीनी-भीनी महक से
माहौल को
रूमानी कर दें
हर सिम्त
मुहब्बत का मौसम
अंगड़ाइयां लेने लगे
तब
तुम समझ लेना
मैं तुम्हें याद करती हूं...
haai....fir wahi khoobsurat lahja
11 नवंबर 2008 को 1:53 am बजे
komal bhavon ki prakhar abhivyakti