याद उस शख़्स की...


रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
याद उस शख़्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे

ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

ज़िन्दगी एक जज़ीरा है तमन्नाओं का
धूप उल्फ़त की यही बात बताती है मुझे

हर तरफ़ मेरे मसाइल के शरार बरपा हैं
जुस्तजू अब्र की हर लम्हा बुलाती है मुझे

में संवरने की तमन्ना में बिखरती ही गई
आंधियां बनके हवा ऐसे सताती है मुझे

जब से क़िस्मत का मेरी रूठ गया है सूरज
तीरगी वक़्त की हर रोज़ डराती है मुझे

आलमे-हिज्र में 'फ़िरदौस' खो गई होती
चांदनी रोज़ रफ़ाक़त की बचाती है मुझे
-फ़िरदौस ख़ान
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3 Response to "याद उस शख़्स की..."

  1. बेनामी Says:
    18 अगस्त 2008 को 10:00 am बजे

    रातभर दर्द के जंगल में घुमाती है मुझे
    याद उस शख्स की हर रोज़ रुलाती है मुझे

    ख़्वाब जब सच के समन्दर में बिखर जाते हैं
    उम्र तपते हुए सहरा में सजाती है मुझे

    बेहद खूबसूरत और संजीदा ग़ज़ल है...

  2. Devesh Gupta says:
    18 अगस्त 2008 को 1:21 pm बजे

    bahut khoob Phirdous ji ... Aap bhut achcha likhti hain

  3. Udan Tashtari says:
    18 अगस्त 2008 को 8:52 pm बजे

    सुंदर अभिव्यक्ति है !बधाई !!

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