माहे-जून मुबारक हो..

मेरे महबूब !
माहे-जून मुबारक हो...
ये वही माहे-जून है, जिसमें तुम जुदा हुए थे, एक बार फिर से मिलने के लिए... और फिर इसी माह में मिले भी...
अज़ल से अबद तक के इस सफ़र में तुम ही मेरे हमराह हो... ये दुनिया हो या वो दुनिया... इस सफ़र में कितने ही हिज्र के मौसम आए और आकर ठहर गए... लेकिन हिज्र का ये मौसम भी एक रोज़ गुज़र जाएगा... और फिर हमेशा मेरे हमराह रहना...
(Firdaus Diary)
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