ख़ुशी
फ़िरदौस ख़ान
कभी-कभार इंसान बहुत ख़ुश होता है... इतना ख़ुश कि उसे लगता है, सारी कायनात ख़ुशी से झूम रही है... वो अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करना चाहता है, सबको बता देना चाहता है कि आज वो बहुत ख़ुश है... उसे वो ख़ुशी मिली है, जिसका वो तसव्वुर भी नहीं कर सकता था... उसे वो ख़ुशी मिली है, जिसे पाना उसके लिए नामुमकिन था... लेकिन ख़ुदा के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है... ख़ुदा इंसान के लिए नामुमकिन को भी मुमकिन कर देता है... ऐसे में दिल चाहता है कि जी भर कर अपने ख़ुदा का शुक्र अदा करें, और सजदे में ही पड़े रहें...
बस, एक ऐसी ख़ुशी ज़िन्दगी को मुकम्मल कर दिया करती है...
अगर देखी जहां में तो नबूवत आपकी देखी
करम देखा, अमल देखा, मिसाले-ज़िन्दगी देखी
न हो मायूस पंछी, इक ज़ियारत यूं भी होती है
उसी को देख जिसने मदीने की गली देखी...
(ज़िन्दगी की किताब का एक वर्क़)
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