दोस्ती...रफ़ाक़त...एक अनछुआ अहसास है...
दोस्ती...रफ़ाक़त...एक अनछुआ अहसास है...रफ़ाक़त का यह जज़्बा, हवा के उस झोंके की मानिंद नहीं, जो खुली, महकी ज़ुल्फ़ों से एक पल के लिए अठखेलियां करता गुज़र जाए...किसी अनजान दिशा में...बल्कि यह तो वो दायिमी अहसास है जो रूह की गहराई में उतर जाता है...हमेशा के लिए...फिर यही अहसास आंखों में समाकर मुसर्रत और होंठों पर आकर दुआ बन जाता है...दोस्ती को किसी दायरे में क़ैद नहीं किया जा सकता...यह अहसास ओस की कोई बूंद नहीं जो ज़रा-सी गर्मी से फ़ना हो जाए...यह तो वो अहसास है जो नीले आसमान की तरह वसीह और समन्दर की मानिंद गहरा है...
फ्रांसिस बेकन ने बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में दोस्ती के इस जज़्बे को बयान किया है... वे कहते हैं...
A man cannot speak to his son but as a father; to his wife but as a husband; to his enemy but upon terms: whereas a friend may speak as the case requires, and not as it sorteth with the person. But to enumerate these things were endless; I have given the rule, where a man cannot fitly play his own part; if he have not a friend, he may quit the stage.
17 नवंबर 2009 को 1:28 am बजे
dosti ko aapne bahut achche se bayaan kiya hai....
achchi lagi aaapki yeh post....
17 नवंबर 2009 को 10:52 am बजे
क्या खूब लिखा है अनछुए एहसासों के एहसास को
19 नवंबर 2009 को 5:38 pm बजे
दोस्त के लिए ज्यादा से ज्यादा ये किया जा सकता है कि हम भी उसके दोस्त रहें।
22 नवंबर 2009 को 1:13 pm बजे
bhavnaao ke prvah me vahna achha hai magar agar usme satyta ka put bhi ho to adbhud hai dosti ki bhut behtreen paribhasha aap ne vyakt ki,,,
saadar
praveen pathik
9971969084
12 दिसंबर 2009 को 6:20 pm बजे
Dil se likha gaya hai,achchha to hona hi thha Badhai.
Ek Apana hi-
Dhamu
1 अगस्त 2010 को 11:12 pm बजे
सटीक एकदम