गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं...


बात उन दिनों की है जब हम हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रहे थे. हर रोज़ सुबह फ़ज्र की नमाज़ के बाद रियाज़ शुरू होता था. सबसे पहले संगीत की देवी मां सरस्वती की वन्दना करनी होती थी. फिर. क़रीब दो घंटे तक सुरों की साधना. इस दौरान दिल को जो सुकून मिलता था. उसे शब्दों में बयां करना बहुत मुश्किल है.

इसके बाद कॉलेज जाना और कॉलेज से ऑफ़िस. ऑफ़िस के बाद फिर गुरु जी के पास जाना. संध्या, सरस्वती की वन्दना के साथ शुरू होती और फिर वही सुरों की साधना का सिलसिला जारी रहता. हमारे गुरु जी, संगीत के प्रति बहुत ही समर्पित थे. वो जितने संगीत के प्रति समर्पित थे उतना ही अपने शिष्यों के प्रति भी स्नेह रखते थे. उनकी पत्नी भी बहुत अच्छे स्वभाव की गृहिणी थीं. गुरु जी के बेटे और बेटी हम सबके साथ ही शिक्षा ग्रहण करते थे. कुल मिलाकर बहुत ही पारिवारिक माहौल था.

हमारा बी.ए फ़ाइनल का संगीत का इम्तिहान था. एक राग के गायन के वक़्त हम कुछ भूल गए. हमारे नोट्स की कॉपी हमारे ही कॉलेज के एक सहपाठी के पास थी, जो उसने अभी तक लौटाई नहीं थी. अगली सुबह इम्तिहान था. हम बहुत परेशान थे कि क्या करें. इसी कशमकश में हमने गुरु जी के घर जाने का फ़ैसला किया. शाम को क़रीब सात बजे हम गुरु जी के घर गए.

वहां का मंज़र देखकर पैरों तले की ज़मीन निकल गई. घर के बाहर सड़क पर वहां शामियाना लगा था. दरी पर बैठी बहुत-सी औरतें रो रही थीं. हम अन्दर गए, आंटी (गुरु जी की पत्नी को हम आंटी कहते हैं) ने बताया कि गुरु जी के बड़े भाई की सड़क हादसे में मौत हो गई है. और वो दाह संस्कार के लिए शमशान गए हैं. हम उन्हें सांत्वना देकर वापस आ गए.

रात के क़रीब डेढ़ बजे गुरु जी हमारे घर आए. मोटर साइकिल उनका बेटा चला रहा था और गुरु जी पीछे तबले थामे बैठे थे.

अम्मी ने हमें नींद से जगाया. हम कभी भी रात को जागकर पढ़ाई नहीं करते थे, बल्कि सुबह जल्दी उठकर पढ़ना ही हमें पसंद था .हम बैठक में आए.

गुरु जी ने कहा - तुम्हारी आंटी ने बताया था की तुम्हें कुछ पूछना था. कल तुम्हारा इम्तिहान भी है. मैंने सोचा- हो सकता है, तुम्हें कोई ताल भी पूछनी हो इसलिए तबले भी ले आया. गुरु जी ने हमें क़रीब एक घंटे तक शिक्षा दी.

गुरु जी अपने भाई के दाह संस्कार के बाद सीधे हमारे पास ही आ गए थे. ऐसे गुरु पर भला किसको नाज़ नहीं होगा, जिन्होंने ऐसे नाज़ुक वक़्त में भी अपनी शिष्या के प्रति अपने दायित्व को निभाया हो.

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं।
बलिहारी गुरु आपने जिन गोविन्द दियो बताय।।

हमारे गुरु जी गुरु-शिष्य परंपरा की जीवंत मिसाल हैं.
गुरु जी को हमारा शत-शत नमन और गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं.

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1 Response to "गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काको लागूं पायं..."

  1. Rakesh Mishra says:
    12 जुलाई 2014 को 2:00 pm बजे

    touching story... salute to Guruji.

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