इंतज़ार

मेरे महबूब
तुम्हारे इंतज़ार ने
उम्र के उस मोड़ पर
ला खड़ा किया है
जहां से
शुरू होने वाला
एक सफ़र
सांसों के टूटने पर
ख़त्म हो जाता है
लेकिन-
फिर यहीं से
शुरू होता है
एक दूसरा सफ़र
जो हश्र के मैदान में
जाकर ही मुकम्मल होता है...
इश्क़ के इस सफ़र में
मुझे ही तय करना है
फ़ासलों को
ज़िन्दगी में भी
और
ज़िन्दगी के बाद भी
तुम्हारे लिए...
-फ़िरदौस ख़ान
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17 Response to "इंतज़ार"

  1. निर्मला कपिला says:
    10 जनवरी 2010 को 9:16 am बजे

    इश्क के इस सफर मे मुझे ही तय करना है इन फास्लों को ज़िन्दगी मे भी और ज़िन्दगी के बाद भी ----तुम्हारे लिये वाह बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें

  2. sanjeev kuralia says:
    10 जनवरी 2010 को 9:48 am बजे

    बहुत मज़ेदार .......नाज़ुक सी नज़म .....!

  3. डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) says:
    10 जनवरी 2010 को 11:30 am बजे

    कविता बहुत अच्छी लगी...

  4. बवाल says:
    10 जनवरी 2010 को 11:34 am बजे

    क्या बात कही है आपने मोहतरमा। जैसे आसमान से नाज़िल होती हुई ग़ज़ल। इस चित्र के साथ इस रचना को हमेशा संभाल के रखिएगा। जब वक्त मिलेगा तो आपकी किताब "गंगा जमुनी संस्कृति के अग्रदूत" ज़रूर ख़रीद कर पढ़ेंगे।
    आपकी उपलब्धियों ने बहुत प्रभावित किया। आभार।
    फ़ीअमानिल्लाह।

  5. शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' says:
    10 जनवरी 2010 को 11:35 am बजे

    फिरदौस साहिबा, आदाब
    नज्म पढ़कर काफी देर तक सोचना पड़ा
    बस इतना ही कहेंगे-
    आपकी अब तक की सबसे बेहतरीन तख्लीक़ है
    वाक़ई (उनमें, जो हम पढ़ चुके हैं)
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

  6. vandana gupta says:
    10 जनवरी 2010 को 4:31 pm बजे

    bahut hi umda khyal .........waah , dil ko choo gayi rachna.

  7. अतुल मिश्र says:
    10 जनवरी 2010 को 8:00 pm बजे

    Waah, Kya Baat Hai !! Bahut Khoobsoorat Nazm Hai !!

  8. Razi Shahab says:
    13 जनवरी 2010 को 11:44 am बजे

    bahut nazuk bhav so nice

  9. रचना दीक्षित says:
    18 जनवरी 2010 को 3:26 pm बजे

    bahut khub kaha hai

  10. Mohinder56 says:
    2 फ़रवरी 2010 को 12:52 pm बजे

    बहुत खूबसूरत ख्यालात का मुजाहिरा किया है आपने अपनी इस रचना में...गजल का एक शेर याद आ गया आपकी यह रचना पढ कर..

    अपनी मर्जी से कहां अपने सफ़र के हम हैं
    रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं.

    लिखते रहिये

  11. बेनामी Says:
    8 फ़रवरी 2010 को 4:44 pm बजे

    एक सफ़र साँसों के टूटने पर ख़त्म हो जाता है
    ... फिर यहीं से शुरू होता है दूसरा सफ़र.
    तस्वीर, रचना तथा अनंत की ओर निराली - एक से बढ़कर एक - बहुत बहुत सुंदर.

  12. Unknown says:
    24 फ़रवरी 2010 को 11:34 pm बजे

    फिरदौस साहिबा, आदाब
    नज्म पढ़कर काफी देर तक सोचना पड़ा
    बस इतना ही कहेंगे-
    आपकी अब तक की सबसे बेहतरीन तख्लीक़ है

  13. बेनामी Says:
    6 मार्च 2010 को 8:55 pm बजे

    पाकीज़गी, इबादत और मुहब्बत....... आपके कलाम में हमेशा देखने को मिलती हैं.......आपने इश्क़ को इबादत दर्जा दे दिया है.......सच, हमें रश्क होता है उस शख्स से, जिसे तसव्वुर में रखकर आप कलाम कहती हैं.......

  14. Yashwant R. B. Mathur says:
    27 सितंबर 2011 को 3:39 pm बजे

    कल 28/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

  15. संगीता स्वरुप ( गीत ) says:
    28 सितंबर 2011 को 10:49 am बजे

    बहुत गहन ..सुन्दर अभिव्यक्ति

  16. सदा says:
    28 सितंबर 2011 को 11:45 am बजे

    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

  17. S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') says:
    28 सितंबर 2011 को 2:30 pm बजे

    खुबसूरत नज़्म....
    सादर...

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