कितने वर्क़ पुरानी यादों के...
ज़िन्दगी की किताब में
कितने वर्क़ पुरानी यादों के
आज भी
मैंने सहेजकर रखे हैं...
कुछ वर्क़
क़ुर्बतों की खुशबू से सराबोर हैं
हथेलियों पर सजी
गीली मेहंदी की
भीनी-भीनी महक की तरह...
और
कुछ वर्क़
हिज्र की स्याह रातों से वाबस्ता हैं
जाड़ों की कोहरे से ढकी
उदास शाम की तरह...
मैंने
आज भी सहेजकर रखा है
पुरानी यादों को
कच्चे ताक़ में रखी
पाक किताबों की तरह...
-फ़िरदौस ख़ान
24 अक्तूबर 2009 को 4:47 pm बजे
बहुत ही खुबसूरत है यादो के वर्क पाक किताबो की तरह .........
24 अक्तूबर 2009 को 5:10 pm बजे
कभी कभी यादें ही जीवन जीने का सहारा बन जाती हैं !
24 अक्तूबर 2009 को 7:41 pm बजे
बहुत खूबसूरत रचना !!
25 अक्तूबर 2009 को 9:14 am बजे
कच्चे ताख में रखी
पाक किताबों की तरह
वाह!
25 अक्तूबर 2009 को 12:34 pm बजे
Waah! Bahut Khoobsoorat Rachna !! Dil Ko Chhoo Liya !! Badhaai !!
26 अक्तूबर 2009 को 12:48 am बजे
बहुत ही खुबसूरत !
27 अक्तूबर 2009 को 8:42 pm बजे
वाह क्या बात है.
यादों को सहेजने का आपका अंदाज़-ए-बयाँ......
कितनी खूबसूरती से खुशबू और उदास शाम दोनों को सहेजा हुआ है
क्योंकि दोनों ही महबूब से जुड़े हैं.
कच्चे ताख में रखी पाक किताबों की तरह..... लाजवाब ख़्याल है.
कुछ लोगों की किस्मत में यादों का ही सहारा लिखा होता है.
शायद............
6 मार्च 2010 को 9:34 pm बजे
ज़िन्दगी की किताब में
कितने वर्क़ पुरानी यादों के
आज भी
मैंने सहेजकर रखे हैं...
कुछ वर्क़
क़ुर्बतों की खुशबू से सराबोर हैं
हथेलियों पर सजी
गीली मेहंदी की
भीनी-भीनी महक की तरह...
और
कुछ वर्क़
हिज्र की स्याह रातों से वाबस्ता हैं
जाड़ों की कोहरे से ढकी
उदास शाम की तरह...
मैंने
आज भी सहेजकर रखा है
पुरानी यादों को
कच्चे ताख़ में रखी
पाक किताबों की तरह...
सुब्हानअल्लाह.......लहजे की शगुफ्तगी और पाकीज़गी का जवाब नहीं.......
17 अक्तूबर 2012 को 3:09 pm बजे
Bina Kasoor Koi door Nahi Hota..Har kadam par Koi Majboor Nahi Hota..tootne ko to dil toot jate hai zahaan me hazaaro..Magar kabhi Kisi akele ka Sara Kasoor Nahi Hota..mukesh son
17 अक्तूबर 2012 को 3:10 pm बजे
Bina Kasoor Koi door Nahi Hota..Har kadam par Koi Majboor Nahi Hota..tootne ko to dil toot jate hai zahaan me hazaaro..Magar kabhi Kisi akele ka Sara Kasoor Nahi Hota..mukesh soni