सजी फूलों से राहें


आज बिखरे हैं मेरी क़िस्मत के सितारें कितने
कल तलक थे मेरी मुट्ठी में सहारे कितने

यूं भी दिन गुज़रे सजी फूलों से राहें, लेकिन
घर में बसते रहे हर सिम्त शरारे कितने

फिर बहार आई जो महकी है रफ़ाकत उसकी
देखना इसमें छुपे ख़्वाब हमारे कितने

चाह क़ुर्बत की लिए लोग भटकते हैं
कर रहे मील के पत्थर भी इशारे कितने

भीड़ ही भीड़ यहां हसरतों की किश्ती में
नाख़ुदा तूने यहां लोग उतारे कितने

सब पहुंच जाएंगे मंज़िल, भरोसा तो रखो
एक ही दरिया के होते हैं किनारे कितने

कौन अब वादिये-फ़िरदौस तेरी सैर करे
रूठते जा रहे हैं झीलों के नज़ारे कितने
-फ़िरदौस ख़ान

शब्दार्थ
शरारे=शरारे
क़ुर्बत=नज़दीकी
वादिये-फ़िरदौस= कश्मीर
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4 Response to "सजी फूलों से राहें"

  1. अमिताभ मीत says:
    29 अगस्त 2008 को 11:15 am बजे

    बहुत खूब. आप की पोस्टस अच्छी लगती हैं . बहुत उम्दा.

  2. तरूश्री शर्मा says:
    29 अगस्त 2008 को 3:15 pm बजे

    आज बिखरे हैं मेरी क़िस्मत के सितारें कितने
    कल तलक थे मेरी मुट्ठी में सहारे कितने...

    बहुत खूबसूरत और दिल से जुड़ा, सीधा सच्चा शेर है।

  3. Udan Tashtari says:
    29 अगस्त 2008 को 8:14 pm बजे

    बेहतरीन..बहुत उम्दा...वाह!

  4. बेनामी Says:
    30 अगस्त 2008 को 1:09 pm बजे

    यूं भी दिन गुज़रे सजी फूलों से राहें, लेकिन
    घर में बसते रहे हर सिम्त शरारे कितने

    शानदार...

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